पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/१९

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

8 श्रीश्रीनिवासपरब्रह्मणे नमः श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्यम् प्रथमो भागः श्रीश्वेतवराहकल्पवृत्तान्तकथनम् 8 श्रियः कान्ताय कल्याणनिधये निधयेऽर्थिनाम् । श्रीवेंकटनिवासाय श्रीनिवासाय मङ्गलम् ।। १ ।। श्रीवेंकटाचलाधीश श्रियाध्यासितवक्षसम् । श्रितचेतनमन्दारं श्रीनिवासमहं भजे ।। २ ।। श्रीमते भूवराहाय नमः कृत्स्ना वसुन्धरा । उद्धृता येन पातालाद्वासार्थ सर्वदेहिनाम् ।। ३ ।। नमो यज्ञवराहाय कृष्णाय शतबाहवे । नभस्ते वेदवेदान्तवपुषे विश्वरूपिणे ।। ४ ।। प्रलय के जल-प्लावन-काल में, हिरणि अक्ष महासुरने मही । उदधि घोर अनन्त पताल में, गिरि प्रदेश समेत छिपाय दी ।। १ ।। महि महा प्रभु खोजन सिन्धु में, धर वराह स्वरूप प्रवेश की । कर महारण राक्षस मारि के, धरणि बाहर शीघ्र निकाल ली ।। २ ।। महि फणायत की दृढ भाव से, रहन हेतु चराचर मात्र के । अमर वृन्द प्रफुल्लित चित्त में, दुरित शेष निरापद देखि के ।। ३ ।। अज अनादि प्रभू परमेश की, बहुविधि स्तुतियाँ कखद्ध की । निज िगरा कथा िसत मह सूत महर्षि ने, कहिँ कल्प वराह की ।। ४ ।।