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अतः सर्वे वयं वोरा: साचञ्धानाश्च सर्वदा । योत्स्याम' इति निश्चित्य तेऽथ सम्भूय दस्यवः ।। १४ ।। परिघान्पट्टिशान्प्रासाञ्छक्तिशुलपराश्वधान् धनूषि च स बाणानि खङ्गांश्च विपुलाञ्छुमान् ।। १५ ।। प्रगृह्य परमकृद्धा वरदानबलोद्धताः । विचित्रवाससः सर्वे विविधाः शस्त्रपाणयः ।। १६ ।। निर्ययुर्मदमत्ताश्च चलन्त इव पर्वताः । वहाँ पर शूद्र कुलोद्भव दैत्यों के अंशों से पैदा हुए वीर, अङ्ग, वङ्ग कलिङ्ग , बिडाल तथा वालुक यही पांच महापापी, महावीर नित्य ब्राह्मणों को क्षेत्र, धन सम्पति हरण करते हुए वाघा देते रहते थे । योग कयों में निष्ठ, तपस्या निष्ठ तथा अन्यान्य धर्म कम में निष्ठों को, बच्चे-स्त्रियों तथा वृद्धों को नित्य पीडा देते रहते थे । अग्निहोत्र, वेदपाठ, यज्ञोत्सव वैदिक आचार आदि कहीं कुछ भी नहीं होने पाता या । प्राणी मात्र इन पांचों चोरों से सदा अत्यन्त पीडित होते । वहाँ पर और भी बहुत से क्षुद्र लोग प्राणियों को पीडा देनेवाले थे ! वे सभी चोरगण राजा सुदर्शन को वहा सहसा आया हुआ जानकर, बारम्बार विचार कर कि “ सभी को मिलकर युद्ध करना चाहिए, नहीं तो हम लोगों की अन्य कोई दूसरी गति नहीं है, सुदर्शन नाम का राजा हजार हाथों से युक्त विक्रम में भी सहस्र किरण सूर्य के समान, जहाँ जहाँ क्रोधित होकर देखता है, वहाँ वहाँ के सभी तत्क्षणात अवश्य जल जाते हैं। अत: हम सब चोरगण सर्वदा सावधान होकर युद्ध करे ' परिष, पट्टिश, पाश, शक्ति, शूल, परशु-धनुष, बाण, खङ्ग आदि बहुत से आयुधों को लेकर वरदान के कारण बलोद्धत परम क्रोधी, होकर सभी विचित्र कपड़े पहने अनेकों शस्त्र हाथों में लिये पर्वत के समान चलते हुए निकले । (६-१६) ते युद्धकुशलाश्शूरास्तोमराङ्कुशपाणयः ।। १७ ।। अन्य लक्षणसंयुक्ता वरचर्मासिपाणयः । अहमेव वधिष्यामि सर्वानि'ति बलोद्धताः ।। १८ ।।