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7 तत्र सर्वे समाजग्मुर्युद्धार्थ यमचोदिताः । उनमें से कुछ युद्ध कुशल वीर तोनर तथा अंकुश हाथों में लिये श्रीर कुछ बड़े बड़े ढाल, तलवार लिये “मैं ही सबको मार डालूगा' ऐसा बलोद्धत हो कहते थमराज से प्रेरित होकर युद्धार्थ वही पर आ गये । (१७-१८) सुदर्शनोऽपि तान्दृष्ट्वा कृद्धो नाग इव श्वसन् । १९ ।। स्फुलिङ्गाक्ष बलाध्यक्ष ज्वालाकश महात्सटम् । कालान्तक रणन्नं च पञ्च सृष्ट्वा तु मानसान् ।। २० ।। ससैन्यान्प्रेषयामास चोराणां निग्रहे तथा । उनको देखकर सुदर्शन ने भी क्रोधित नाग के समान फुफकार भारते हुए, सेनापति स्फुलिङ्गाक्ष, बलाध्यक्ष , ज्वालाकेश, भहसट, कालान्तक और रण न्न इन् पांचों को भग से सृष्टि कर चोरों को निग्रह व दमन करने के लिए ससैन्य भेजा । (१९-२०) निर्ययुस्ते रथैरश्चैर्नागानीकैः सुसंवृताः ।। २१ ।। परिघान् पट्टिशांश्चैव भूलखङ्गपरश्वधान् । गृहीत्वा विविशुर्युद्धभूमिं ज्वलितकुण्डलाः ।। २२ ।। चिक्षिपुदुष्टच्छोरेषु बाणान्प्राणहरान् रणे । ते गदाभिविचित्राभिः प्रासैः खङ्गः परश्वधैः ।। २३ ।। अन्योन्यं समरे जत्रुरस्त्रैः शस्त्रैश्च योधका । वे चमकते हुए कुण्डलों को धारण कर रथ, घोड़े तथा अनेकों हाथी आदि से समावृत हो, परिघ, पट्टिश, शूल, खड्ग, फरशा आदि शस्त्रास्त्रों को लेकर निकल पड़ घोर युद्ध-भूमि में घुस पड़े, युद्ध में दुष्ट चोरों पर प्राणघातक बाणों को फेंकने लगे एवं बीरगण-विचित्र-विचित्र गदा, प्रास, खड्गै, फरशा आदि शस्त्रास्त्रों से युद्धक्षेत्र में परस्पर एक दूसरे को मारने लगे ! (२१-२३) 23