पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२०

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श्री श्वेतवराहकल्पवृत्तान्त की कथा श्री लक्ष्मीकान्त, कल्याणसागर, अर्थियों के निधि, श्री वेंकटाचल पर्वत पर निवास करने वाले, सकल सौन्दर्यागार, श्री वेंकटेश भगवान का मंगल हो | जो श्री वेंकटाचल के स्वामी हैं, जिनके हृदय में श्री लक्ष्मीजी निवास करती हैं, जो शरणागत प्राणिमात्र के कल्पवृक्ष हैं, जो श्री के आधार हैं, उन्हीं श्री वेंकटेश भगवान को प्रणाम करता हूँ । श्रीमान् भूवराह भावान को बारंबार प्रणाम करता हूँ, जिन्हों ने सभी शरीरधारियों के रहने के लिये सम्पूर्ण पृथ्वी को पाताल से निकाला है । श्री यज्ञवराह, कृष्ण, शतबाहु, वेदस्वरूप तथा विराट विश्वमूर्ति देव को प्रणाम करता हूँ । (१-४) मुनय ऊचुः-- भगवन् ! सूत! धर्मज्ञ वेदव्यासकृपानिधे । विष्णुस्थानेषु सर्वेषु स्वयंव्यक्तस्थलेषु च ।। ५ ।। यत्र विष्णोरतिप्रीतिर्यत्र सिद्धयन्ति सिद्धयः । अत्यद्भुतं च चारित्रं यत्र विष्णोः प्रवर्तते ।। ६ ।। मनुष्याणां च वसतां यत्र दृश्यो भवेद्धरिः । श्रवणानन्दजनको वृत्तान्तो यस्य वा भवेत् ।। ७ ।। तादृशं वैष्णवं क्षेत्रमदभतं प्रियदर्शनम् । अस्माकं ब्रूहि यच्छूत्वा श्रोतव्यांशो न विद्यते ।। ८ ।। इति पृष्टस्तदा सूतस्तपाध्यानसमाधमान् । ध्यात्वा मुहूर्तमात्रं तु प्रोवाच मुनिसत्तमान् ।। ९ ।। मुनियों ने कहा- 'हे वेदज्ञ, कृपानिधान, धर्मज्ञ, भगवान सूतजी, आप विष्णु भगवान के उस मनोहर, अद्भुत, आकर्षक स्थान का वर्णन कीजिये, जो सभी विष्णूस्थानों में श्रेष्ठ और स्वयं व्यक्त है, जिससे विष्णु को अत्यन्त प्रेम है, जहाँ सभी सिद्धियाँ सिद्ध होती हैं, जहाँ विष्णु का अत्यद्भुत चरित होता है, जहाँ रहते हुए मनुष्यों को भगवान् दिखाई देते हैं, जिसके वृत्तान्त कानों को अत्यन्त