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189 बाणेनैकेन सहसा निजघान महारथ । दश वा विंशतिं वापि त्रिशतं वा रथान्हयान् ।। ४५ ।। गजानां च घटामेकामेकेन शिलपत्रिणा । जधान स महातेजाः कालानलयमोपम ।। ४६ ।। वङबाषावको यद्वदम्भांसि ग्रसते क्षणात् । तद्वत्सैन्यं परं चक्रे भस्मसाडबाननः ।। ४७ ।। कामक्षौहिणीं सेनां सुदर्शनबलाग्रणीः । प्रायद्यमलोकं हि मुहूर्तद्वयमात्रतः ।। ४८ ।। उसकी ऐसी आज्ञा पाकर कनकांगद पहने, परम प्रतापी ज्वालापात ने रथ पर से ही धनुष को ताना । महाराज सुदर्शन ने क्रोधित हो, बडवानल के समान विक्रमवाले बडवानन नामक महाप्रतापी वीर सेनापति की सृष्टि कर उस से कहा केि लडाई में जाओो और अशेष सेना को मार डालो । ऐसा कहे जाने पर उस महारथ ने भी रथ के साथ निकल, बडे भारी धनुष को लाकर उसपर बाण को ताना तथा शतृसैन्य पर छोड दिया । महारथी बडदानन से एक ही बाण से सैकडों हजारों तथा लाखों शतृओं को मार डाला ! प्रलयानल तथा यमराज के समान महातेज त्रडवानन ने दश-दश, बीस-बीस तथा तीस-तीस हाथियों को समूहों को एक ही तेज बःण से मार डाला । जैसे बडवानल समुद्र के जल को क्षण भर में सीख लेता है, वैसे ही इस बडवानने भी सारे महासैन्य को भस्मसात् कर डाला ; एवं इस प्रकार भहाराज सुदर्शन के सेनापति ने एक अक्षोहिणी सेना को दो मुहुर्त मात्रों में ही यमलोक पहुंचा दिया । (४०-४८) निःशेषयं स्वबलं सर्च हृतमालोक्य वेगतः । दिव्यमस्त्रं द सन्धाय 'तिष्ठ तिष्ठे' ति च ब्रवन् ।। ४९ ।। आजगाम रथाच्छीघ्र किरातो लघुविक्रमः । सुदर्शनमहाकोपसञ्जातो बडबाननः ।। ५० ।।