पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२१

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आनन्ददायक और मधुर हैं, जिनको सुनकर पुन: कोई भी श्रयणीय अंश वाकी नई रह जाता । यह सुनकर श्री सूतजी ने, क्षणमात्रं सोचकर, तप, मान, समाधि सहित श्रेप्ठमुनि वगों से कहा । {५-९) श्री सूत उवाच अहो ! पृष्टमपूर्वं च कौतुकं भवतामहो ! । ममापि वाञ्छा महती वक्तुं तत्तु वदामि बः ।। १० ।। श्रुणुध्वं मुनयो यूयं सावधानतया ि त्विमम् क्रीडारसेषु सक्तस्य हरेः क्रीडासमन्वितम् ।। ११ ।। विविधैस्तस्य चारित्रैरुपेतं सर्वसिद्धिदम । सर्वेश्वर्यकरं नृणां सर्वाश्चर्यप्रदं शुभम् ।। १२ ।। पुण्यं पवित्रमायुष्यं सर्वमङ्गलकारकम् । । श्री सूतजी कडने लगे-हे मुनि श्रेष्ठो ! आप लोगों ने अत्यन्त कौतूहल जनक और एकदम अपूर्वं वृत्तान्त पूछा और इसीलिये मेरी भी बहुत इच्छा होती है कि मैं उसे कहूँ । अतः मैं उसे आप लोगों से अवश्य कहूँगा । हे मुनियो ! आप लोग सावधान होकर सुनिए । क्रीड़ारसों में सर्वोत्तम भगवान की क्रीड़ा से सुधटित और उनके अनेक भाँति भाँति के चरितों से परिपूरित सभी सिद्धियों को देनेवाला, सभी ऐश्वयं को करनेवाला, मनुष्यों को सदा आश्चर्य एवं शुभफल को देनेवाला, परम पवित्, आयु को बढ़ानेवला एवं सभी तरह के मंगलकारक श्री शेषाचल से सम्बन्धी श्री वराहकल्प का वृत्तान्त ही है । (१०-१३) पुरा हि सागरैः सर्वैरेकीभूते महीजले । कल्पादौ भगवान् िवष्णुर्वटपत्रसमाश्रयः ।। १४ ।। महलॉकं समाश्रित्य स्थितं च जलसंप्लवम् । विचिन्त्य युगसाहसं जलावस्थानमद्भुतम् ॥ १५ ।।