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92 असुरों का वध करने के लिये सुदर्शन का उत्तर दिशा में जाना । श्रीस्तजी घोले-सूर्य भगवान के समान, प्रताप, विक्रमादित्थ तथ। श्रो वेङ्कटाधीश के आज्ञापरिपालक महाराज सुदर्शन ने उस पश्चिम देश के दुष्टों से रहित तथा निष्कंटक कर, सभी दुर्ग पहाड, इंगल को समतल मैदान बनवा, हाथियों तया घोडों से भूमि को रौदवा कर, वहाँ राज्यपथ बनवा मनुष्यों के सुखपूर्वक रहने की व्यवस्था कर, उस देश पर किसी सत्यवादी परम धर्मनिष्ट राजा को स्थापित कर, तथा देश के अन्यान्य लोगों की अनुमति ले, सेना के साथ दुष्ट और चोरों को जीतने की इच्छा से बर्फ के शोषणार्थ सूथ्र्य भगवान की तरह उत्तर दिशा में प्रस्थान किया । (२-६) पदातयो गजाश्वाश्च रथाश्र गिरिसतिभा ययुरग्रे च वाद्यानि वादयन्ति स्म सर्वतः ।। ७ ।। ततः प्रचोदिता भेय मर्दलानकपुष्कराः । हेमकोणहतास्तीत्रं बलानां चाग्रतस्तदा ।। ८ ।। विनेदुश्च महाघोषाः शङ्खाः शतसहस्रशः । तडिद्भास्करकल्पाश्च खङ्गाः प्रासाश्च पट्टिशाः ।। ९ ।। बभुस्तस्मिन्महासैन्ये यथा मेघेषु विद्युतः । उत्तरे वेङ्कटाङ्गेस्तु भागे कश्चिन्महासुरः ।। १० ।। पैदल सेना हाथियों, घोडों तथा पर्वताकार रथों के साथ, सब तरफ बाजा बजाते हुए आगे-आगे चले । तब मर्दल पुष्कर भेरी आदि लडाई के वाजे सोने के बजनों के अग्र भाग से ताडित होकर जोर से बजने लगे । घोर आवाज वाले सैकडों-हजारों शङ्ख वज उठे । विद्युत के समान चभकवाले खड्ग, प्रास, पट्टिश मेध में बिजली की तरह उस महा सैन्य में चमक उठे । (७-१०) मेरुण्डासुरसुदर्शनसेनयोर्युद्धप्रशंसा भेरुण्डी नाम दैत्यानां प्रवरो बलदर्पितः । ब्रह्मणासीत्पुरा दत्तबरः पर्वतसन्निभः ।। ११