पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२२१

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2003 मीहित होकर श्री वेङ्कटेश भगवान को अचवतार (मूर्ति मात्र) ही कहेंगे । इसी रह कलियुग में कितने ही लोग श्री वेङ्कटेश जी का अपमान भी करेंगे । (५-८) साक्षात्पश्यन्हि तत्सर्वमपश्यन्निव तिष्ठति ।। ९ ।। साक्षाद्भाषणमेकं तु नास्ति तस्य तपोधनाः । परन्तु सर्वभस्त्येव निग्रहानुग्रहावपि ।। १० ।। अधिकं वरदानं तु भविष्यति कलौ युगे । कृतकं तु विमान स्यादित्याख्यामात्रमेव हि ।। ११ ।। किन्तु दर्शनमात्रेण पापकोटिं हरेत् धृवम् । कदाचिन्भहती पूजा स्वल्पैब तु कदाचन ।। १२ ।। स्वयं हि वेङ्कटाधीशः प्रकाशं हि व्रजेत्क्वचित् । अप्रकाशं क्रदाचिच्च वेङ्कटाद्रिशिरोमणिः ।। १३ ।। एवं हि रमया सार्ध क्रीडत्येव च तत्र हि । कलौ युगे तु वैचित्र्यं दर्शयिष्यति केशवः ।। १४ ।। भगवान इस बातों को देखते हुए भी नहीं देखने के समान रहेंगे ! तपोधनों ! उनका साक्षात भाषणमाल ही एक नहीं रहेगा और सभी अनुग्रह तथा निग्रह अवश्य ही रहेंगे, परन्तु कलियुग में वरदान अधिक होगा ! यह विमान कृत्रिम है, यही कथा मात्र हैं, किन्तु कलियुग में दर्शन मात्र से ही ये करोड़ों पाप अवश्य हरण करेंगे। इनकी कभी बड़ी तथा कभी छोटी पूजा होगी । श्री वेङ्कटाधीश भगवान स्वयं कभी कभी प्रत्यक्ष हो जाया करेंगे तथा कभी कभी अप्रकाश (छिप) भी हो जायेंगे । इस प्रकार लक्ष्मी जी के साथ वे वहाँ विहार करते रहेंगे । कलियुग में तो केशव भगवान एक विचित्रता भी दिखलायेंगे । (९-१४) अल्पदानेन वै भक्त्या स्वल्पया पूजया तथा । भविष्यति प्रसन्नश्च स्मृतिमात्रेण केशवः ।। १५ ।।