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2004 नृणां गमनमात्रेण वेङ्कटाख्यगिरिं प्रति । प्रसन्नः स्यादयं त्रिं दास्यतीष्टं च नद्वहु ।। १३ ।। स्वयमप्राकृतो विष्णुश्चरित्र प्राकृतो यथा । करिष्यति तथा देवो मोहयिष्यति ताञ्जनान ।। १७ । थोडा दान योडी भक्ति तथा थोडी ही पूजा या स्मरण भान्न से ही केशव भगवान प्रसन्न हो जायेंगे । श्री वेङ्कट नामक पर्वत के पास जाने से ही यह भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर मनुष्यों को इच्छित अनेक वर देंगे। विष्णु भगवान स्वयं अप्राकृत होने पर भी प्राकृत के समान चरित्र करेंगे लोगों को भोहित करेंगे, तथा प्रसन्न चित्त हो मनुष्यों के भोगने के भोग भोग करेंगे । (१५-१७) उन्भवान् विविधांग्नम्य कारयिष्यन्ति मानवाः ।। १८ ।। आगमिष्यन्ति देवाश्च मेवार्थे वै कलौ युगे । । स्नाभ्यन् िस्वामिनीथे वै करिष्यन्ति निवेदनम् ।। १९ ।। निवेदितं भक्षयेयुर्मनुष्याणामगोचराः । विमानं तद्धि पश्येयुः पूजयेयुर्हि सादराः ।। २० ।। प्रार्थयिष्यन्ति देवाश्च भविष्यामो नरा इति । तेषां हि वेङ्कटाधीशः क्षिप्र दास्यति चेप्सितम् ।। २१ ।। मनुष्प गण भगवान के नाना प्रकार के उत्सव करायेंगे । कलियुग में सेवा के लिए देवता लोग भी आ जायेंग और स्वामितीर्थ में स्नान करेंगे तथा भगवान को नैवेद्य चढायेंगे । वे मनुष्यों को नहीं दिखायी देते हुए भी निवेदन किया हुआ नैवेद्य खा जायेंगे । पुनः लोग उस विमान के दर्शन पावेंगे एवं आदर के साथ पूजा करेंगे। सभी देवगण यह प्रार्थना भी करेंगे कि हम लोग भी मनुष्य हो जाय ! भगवान भी उनको ईप्सित वर तुरंत दे देंगे । (१८-२१)