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2006 तेषामपि रमाधीशः शीघ्र दास्यत्यभीप्सितम् । सान्निध्यं तत्र कुरुते भक्त्या क्रीतो यतो हरिः ।। २९ ।। हे तपस्वियो ! कलियुग आ जाने पर पृथ्वी पर विशेषकर श्री वेङ्कटाचल बहुत अधिक प्रसिद्ध होगा। वहाँ पर श्री रमापति भगवान अत्यन्त सान्निऽय करेंगे। वहाँ के श्री वेङ्कटाधीश में म्लेच्छों, संकर जातियों, श्वपाकों, अधमों, स्त्रियों किरातों, पुल्कस आदिकों तथा हीन जन्मवाले शूद्रों को बहुत ही अधिक भक्ति होगी । रमापति भगवान उनका अभीप्सित बहुत ही शीघ्र प्रदान करेंगे । उन भक्त लोगों में भगवान श्री वेङ्कटेश सर्वदा प्रत्यक्ष रहते हैं, क्योंकि भगवान भक्ति से खरीदे जा चुके हैं। (२६-२९) आर्यास्तुरुप्का मालव्या गौडा वङ्गाः कलिङ्गकाः । आन्ध्राः कर्णाटदेशीयाः कोसलोद्भूतमानुषाः ।। ३० ।। अङ्गाश्चोलाश्च पाण्डवाश्च नानादेशेषु मम्भवाः । द्वीपान्तरगताश्चापि वेङ्कटेशमहोत्सवे ।। ३१ ।। धारयन्तो महाभक्तिमागमिष्यन्ति कोटिशः । सर्वे लब्ध्वा वरं चेष्टं भविष्यन्ति मुदाऽन्विताः ।। ३२ ।। आर्य, तुरुष्क, मालव्य, गौड, बङ्गाली, कलिङ्गवासी, आंध्रवासी, कनेटिक देशवासी, कोसलवासी, अङ्गवासी, चोल पांड्य तथा अन्यान्य नाना देशों एवं दूसरे द्रौपों में उत्पन्न लोग भी थी वेङ्कटेश भगवान के उत्सव में महा भक्ति रखते हुए करोडौं.करीड़ों की संख्या में आयेंगे और सभी अपना-अपना इष्ट लाभ कर प्रसन्न हो जायेगे । (३०-३२) अप्राकृतः स्वर्णसानुरपि श्रीवेङ्कटाचलः । प्राकृताचलवद्भूमौ भविष्यति कलौ युगे ।। ३३ ।। मतान्तरप्रविष्टानामपि भक्तिर्भविष्यति सर्वात्मके रमाधीशे वेङ्कटेशे परात्मनि ! ३४