पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२२७

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2009 भुनय ऊचुः---- भगवन् ! सर्वशास्त्रार्थेवेदवेदाङ्गपारग ! । आचार्यसंश्रयादेव लभन्ते हि परां गतिम् ।। १ ।। चेतनस्याचार्याश्रयणायुरुषार्थप्रतिनिरूपणम् रुप्तविंशोऽध्याय अहो ! ह वैष्णवो धर्म इति चोक्त त्वया पुरा । ! त्वया तु तत्सर्वं वक्तव्थं नस्तपोधन ! ।। २ ।। गुरु महिमा आयण गुरु, अनुपम वैष्णव धर्म । रांयभ-नियम-विचार शुचि, यज्ञ स्थागफल-कर्म ।। १ ।। कर्मयोरा समज्ञान अरु, ध्यान निरत स्वाध्याय । चेतन विप्र का आचार्याश्रयण से पुरुषार्थ प्राप्ति का वर्णन श्रीसूत उवाच :- मुनियों ने कहा-सब शास्त्रों के अर्थ तथा वेद-वेदाङ्ग पारंगत हे भगवन सूतजी ! आचार्य के शरण ही से मनुष्य परागति को लाभ करता है । अहो ! वैष्णव धर्म धत्य है-यह आपने पहले कहा था । हे तपोधन सूत जी, वह सभी आप हम लोगों से कहिये । (१-२) 27 श्रयतामभिधास्यामि सङ्ग्रहेण तपोधनाः ! । उद्धवृत्य भूमि पातालाद्वेङ्कटाह्वयभूधरे ।। ३ ।। सितेन भूवराहेण धरण्यै भाषिताः पुरा । पृच्छन्त्यै वैष्णवान्धसन् िमे ये धर्मा मनोहराः ।। ४ ।।