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29 सायङ्काले प्रतिदिनं योगं कुर्याद्विचक्षणः । विविक्तदेशे कीटादिसर्वबाधाविवर्जिते ।। १६ ।। मृद्वासने झुखासीनः स्वस्तिकाद्यासने तथा । ऋजुकायशिरोग्रोवो नासाग्रन्यस्तलोचनः ।। १७ ।। इड्या वायुमाकृष्य कुम्भयेच्च शनैः शनैः । उद्रोध्य कुण्डलीं सुप्तां सुषुम्नायां प्रवेशयेत् ।। १८ ।। एकान्त तथा कीडे कांटे आदि वाधरहित स्थान में मुलायम आसन पर सुखपूर्वक स्वस्तिकादि शासन में बैठ कर शरीर, मस्तक तथा गर्दन सीधा रखकर, नासिकाग्र पर नाटक लगाये, इडा नाडी से वायु खींचकर धीरे-धीरे रोके सुषुम्ना नाडी में सोई हुई कुण्डलिनी (चक्र) को जगाकर प्रतिदिन बुद्धिमान पुरुष सन्ध्या (१६-१६) यदा तु योगिनो देहे जिहासा वर्तते तदा । ओमित्युच्चारयेद्योगी वेङ्कटेशमनुस्मरन् ।। १९ ।। ब्रह्मरन्ध्राद्विनिर्गच्छन्द्रविशेदचिराकृतिम् । अचिरादिक्रमार्गेण प्रविश्य परमं पदम ।। २० ।। सायुज्यं वेङ्कटेशस्य लब्ध्वानन्दी भवेच्चिरम् । जब योगियों को शारीर छोड्ने की इच्छा हो, तब श्रीवेंकटेश भगवान का स्मरण कर ' ओोम' ऐसा उच्चारण करे तथा ब्रह्मरन्ध्र से बाहर निकलते हुए अत्रिकृति मार्ग में प्रवेश करे और चिरादिक भागों से परम पद में प्रवेश कर श्री वेङ्कटेश भगवान का सायुज्य लाभकर व्हुत कालतक आनन्द भोगी हो जाय । (१९-२०) यदि स्याद्वेङ्कटेशस्य कैङ्कये धीर्बलीयसी ।। २१ ।। तदा योगं स्थिरः कुर्यादुपदेशाद्गुरोः स्वयम् । पूर्वोक्तेनैव मार्गेण योगं कुर्याद्विचक्षणः ।। २२ ।।