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श्री सूतजी ने कहा-हे मुनियो ! जल का आगम संक्षेप में सुनी । चार हजार युग का ब्रह्मा का एक दिन होता है और उनकी रात्रि का प्रमाण भी इतनी ही है । दिनावसान के समय भगवान सूर्य, जो त्रिमूत्र्यात्मा हैं और त्रिलोचन हैं हजारों किरणों से तपने लगे और उत्कट गम धारण करनेवाली किरणों से महाघोर अग्नि बरसाने लगे ! इसी तरह कई वर्षों तक दृष्टि एकदम नहीं हुई और पृथ्वीवासी सभी तपोधन मुनिजन इसी जनलोक में ब्रह्माजी की रात्रि होने तक रहे। उस समय उस महाकालाग्नि से संपूर्ण जंगल और पहाड जल गये । इस प्रकार सब कुछ भस्मीभूत हो जाने पर सवत्सक महान् वायु अनेक वर्षों तक वहृता रहा । पश्चात् महाकाव मेघ के विशालखण्ड जल से लदे हुए चारों ओर जमने लगे और तत्पश्चात् भीषण मूलधार वर्षा बहुत काल तक रात-दिन होती रही । अतः महाभूमि द्रवीभूत होकर पाताल को जाने लगी, सातों समुद्र परस्पर मिल गये । और अन्ततः भहलॉक तक को छेककर चारों तरफ़ जल ही जल भर गया । फिर इसी प्रकार हजारों युग तक ब्रह्माजी की रात होगी । (२२-३०) निझावसाने गोविन्दः सृष्टिस्थित्यन्तकारकः ।। ३० ।। चतुर्मुखशिवाशक्यं भूमेरुद्धणं हरिः कर्तुकामस्तदा विष्णुर्वटपत्रतले स्थितः ।। ३१ ।। श्धेतं वराहदेहं च सर्वयज्ञमयं शिवम् । अतिभीमं महारौद्रमासाद्य तरसा तदा ।। ३२ ।। प्रविश्य जलमध्यं तु क्षोभयामास वै तदा । संवर्तमेघनिर्धातबंहितं च वहन् मुहुः ।। ३३ ।। प्रविवेश महापोत्री पातालं जलपूरितम् । अन्तत: रात्रि के अवसान हो जाने पर सृष्टि-स्थिति-संहार के करनेवाले गोविंद भगवान वटपप्त पर स्थित होकर चतुर्मुख तथा शिवजी को भी अशक्य पृथ्वी का उद्धार करने की कामना करने लगे । महा भयंकर, महा विशाल, सर्वयज्ञमय परममङ्गलभय, श्वेतवाराह की देह अति शीघ्र धारण करके जल में प्रवेश किया और सम्पूर्ण जल को क्षोभित कर दिया तथा प्रलयकाल के संवर्तमेघमाला के समान गर्जन करते हुए महावराह श्री भगवान् ने जलपूर्ण पाताल में प्रवेश किया । वहाँ सम्पर्ण रसातल में ढूंढा । (३२-३४)