पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२४१

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

कायरसायन तीर्थ का माहात्म्या 223 पीछे योग का अभ्यास करे तो सिद्ध हो जाय । सी के समीप परम गुट्य कायरसायन तीर्थ है उसका जल पान करने से तत्क्षण देह भी शुद्ध हं यदि कोई प्रीली १त्ती परीक्षार्थ उसमें डाली जाय तो उस तीर्थ में वह क्षण भात्र में ही श्याम तथा सुन्दर हो जाती है पथ्थर की चट्टान से छिपा दिया है। पुण्यात्मा महात्माओं को ही वह दर्शन देता है। जिस किसी भी उपाय से बुद्धिमान् शरीर को दृढ़कर श्रीवेङ्कटेश लयोंकि शेष रूप भगवान का दासत्व हं जीविका स्वरूप है कैकर्य से हीन पुरुष स्वामि का द्रोही है। इसमें सन्देह नहीं इसलिये विद्वान नित्य तथा नैमित्तिक कम को अवश्य ही करता रहे है उनको भ करे, जो शास्त्रों में निन्दित न हों । यही पहले श्री वराह भगवान ने वेङ्कटाचल पर्वत पर श्री पृथ्वी देवी से कहा था । {३६.४१) सेो शरीरधारण भोगो ज्ञानं सामथ्र्यमेव च। सर्व वेङ्कटनाथस्य कुर्यात्स्वाधीनमञ्जसा ।। ४३ ।। विनश्रमिदं सर्वं जगत्पश्येद्धि बुद्धिमान् । अन्यान्य जो कुछ साधन इकट्टे किये गये हो, बुद्धिभान मनुष्य उन सभी चीजों को तुरन्त श्री वेङ्कटेश भगवान के अधीन कर दे और इस सारे जगत को (४२-४३) निरये पापकारी तु पतत्येव न संशयः ।। ४४ पुण्यकृत्सुखमाप्तोति ध्रुवमित्येव बुद्धिमान् । चिन्तयेत्सततं योगी चित्ते वेङ्कटनायकम् ।। ४५