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226 ब्रह्मा तु पूर्वमभ्यच्र्य श्रीमद्वेङ्कटनायकम् । अष्टोत्तरशतैर्दिव्यैर्नामभिर्मुनिपूजितैः ।। ५ ।। स्वाभीष्टं लष्धवान्ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः । भवद्भिरपि पत्रैश्च समच्र्यस्तैश्च नाभिः ।। ६ ।। श्री सूतजी कहने लगे-प्राचीन काल में शेष भगवान ने श्री कपिलमुनि से एक अत्यन्त गोपनीय तथा भगवान् का परम प्रीतिकारक विषय कहा था । ब्रह परम पवित्र, पुण्योत्पादक, पापनाशक, भगवान की अष्टोत्तर शतनामावली है । सर्वलोका पितामह वह्माजी ने पहले झाकाशगङ्गा से स्वर्ण के समान चमकनेवाले कमलों को मंगाकर भगवान बेङ्कटेश की मुनिपूजित दिव्य अष्टोत्तर शत नामों से पजाकर अपना अभीष्ट प्राप्त किया | आप लोग भी १ह्म तथा अष्टोत्तर शतनामावली से उनकी पूजा करे ! (३-६) तेषां शेषनागाधीशमानसोल्लासकारिणाम् । नाम्नामष्टशतं वक्ष्ये वेङ्कटाद्रिनिवासिनः ।। ७ ।। आयुरारोग्यदं पुंसां धनधान्यसुखप्रदम् । ज्ञानप्रदं विशेषेण महदैश्वर्यकारकम् ।। ८ ।। अर्चयेन्नामभिर्दिव्यैर्वेङ्कटेशपदाङ्कितैः । उस शेष पर्वताधीश श्री बेङ्कटेश भगवान के मन को प्रसन्न कर देनेवाले श्री वेङ्कटाधीश भगवान के नामों के अष्टोसर शत को कहता हूँ, जो आयु, आरोग्य, धन-धान्य, सुख देनेवाला तथा विशेष रूप से ज्ञानदायक और महान ऐश्वर्यकारक हैं । इन्ही दिव्य वेङ्कटेश पदांकित अष्टोत्तर शतनामों से अर्चना करना उचित है । (७-९) नाम्नामष्टशतस्यास्य ऋषिङ्गहा प्रकीर्तितः ।। ९ ।। छन्दोऽनुष्टुप्तथादेवो वेङ्कटेश उदाहृत । नीलगोक्षीरसम्भूतो बीजमित्युच्यते बुधैः ।। १० ॥