पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२५१

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गोपनीयमिदं स्तोत्रं सर्वेषां न प्रकाशयेत् । श्रद्धाभक्तियुतामेव दापयेन्नाम सङ्ग्रहम् ।। ४७ ।। इति शेषेण कथितं कपिलाय महात्मने । कपिलाख्यमहाथोगिसकाशात्तु मया श्रुतम् । तदुक्तं भवतामद्य सद्य:प्रीतिकरं हरेः ।। ।। ४८ ।। 233 यही अष्टोत्तर शत श्री भगवान के नाम हैं। इनको चतुर्थी विभक्ति के साथ नमः शब्द तया श्री वेङ्कटेशाय नमः इसको भी मिलाकर जो कोई श्रद्धा तथा भक्ति के साथ पढ़े या सुने उससे श्री वेङ्कटेश भगवान अवश्य ही प्रसन्न होते हैं। किसी भी पूजा में इस अष्टोत्तर शतनाम का पाङ अवश्य करना चाहिए। श्री वेङ्कटेश के नामों से जो वेङ्कटपर्वत निवासी भगवात की पूजा करते हैं उसके फलस्वरूप अवश्य ही उनकी मुक्ति होती है ; इसमें संशय नहीं । यह स्तोत्र परमगोपनीय है, उसे सबके सामने प्रकाश न करना चाहिये। । जो परम श्रद्धालु तथा भयत हों , उन्हें ही इस नामसंग्रह को देना चाहिये । श्री शेष भगवान ने यही स्तोत्र कपिल महात्मा को सुनाया था । पुनः महर्षि कपिल जी से मैंने सुना और अभी भगवान के तुरन्त प्रीतिकारक उसी स्तोत्र को मैंने आप लोगों से कहा । (४४-४८) 30 इति श्रीवाराहपुराणे श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्ये श्रीवेङ्कटेशाऽष्टोत्तर शतनामावलिकीर्तनं नामैकषष्टितमोऽध्यायोऽत्रैकोनत्रिंशत्तमः ।