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234 त्रिंशोऽध्यायः भहर्षीणां श्रीवेङ्कटेशसेवार्थं श्रीवेङ्कटाचलागमनम् श्री सूत उवाच 'बूत यूयं पुनः श्रोतुं किमिच्छथ तपोधनाः । वक्ष्यामि तदशेष च नात्र कार्या विचारणा' । इत्युक्ता मुनयः सर्वे प्रोचुरेवमिदं वचः ।। १ ।। अष्टोत्तर शतनाम का, ऋषिगण सुनि परमार्थ । वेङ्कटगिरि पर जा जुटे, वेङ्कटेश सेवार्थ ।। १ ।। बहुविधि प्रभु सेवा करी, दर्शन दिये सुरेश । ऋषि गण प्रभु विनती करी, तुष्ट हुए सर्वश ।। २ ॥ प्रभुगिरि सेवा अटल फल, शौनक कृत गुण पान । सूत महर्षि लिखित यह, विस्तृत बहु विज्ञान ।। ३ ।। वेंकट अचल महात्म्य का भाग यहाँ प्रथमान्त । श्री वराह पुराण का, लिखा सूत ऋषि कान्त ॥ ४ ॥ महर्षिलोगों का वेंकटचल पर आगमन श्री सूतजी बोले :-हे ऋषिगण, बोलिये, आप लोग अब और क्या सुनना चाहते हैं? मैं उसे सम्पूर्णरूप से कहूँगा । इसमें चिन्ता न करें । यह सुनकर समी ऋषि-वृन्दों ने यह वचन कहा । (१) मुनय ऊचु :- भगवन्भगवद्भक्तिक्षीरसागरचन्द्रमाः । वेङ्कटेशस्य माहात्म्यमुक्तं सूत त्वयाऽनघ ।। २ ।।