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23७ रत्न-सानु हेमाद्रि से भी बढकर अभूतपूर्व श्री वेङ्कटेश भूधर यही है-ऐसा कहते हुए अत्यन्त मनोहर, दिव् तथा परमोत्तम विमान को देखा । (२४-२६) विमानं स्वामितीर्थे च स्नात्वा देवं श्रियःपतिम् ।। २९ ।। कोटिकन्दर्पलावण्यं किरीटमुकुटोज्ज्वलम् । उरःस्थितश्रिया कान्तमुक्तादामोपशोभितम् ।। ३० ।। चतुर्भुजमुदाराङ्गं शङ्कचक्रश्चरम्परम् । नीलमेघनिभं श्यामं पीतवाससमच्युतम् ।। ३१ ।। श्रीभूमिसहितं विष्णुपमाचिंतपदाम्बुजम् । प्रणेमुः सहसा दृष्ट्वा हर्षोंत्फुल्लविलोचनाः । तुष्टुवुर्वेदमन्त्रैश्च स्तोत्रैश्च शृतिसम्मतैः ।। ३२ ।। स्वामि तीर्थ में स्नान कर श्रीमति, करोडों कामदेव के लावण्ययुक्त, किरीट मुकुट से प्रकाशित, वक्षस्थित, श्रीकान्त, मुक्ताहार से शोभित, चतुर्भुज, शंखचक्र धारी, नील मेघ के समान श्याम वर्णवाले, पीताम्बर धारी, श्री भूमि सहित, लक्ष्मी से पूजितपदाम्बुज, श्री विष्णु भगवान को हषोंत्फुल्ल नयन हो सानन्द प्रणाम किया तथा वेद और श्रुतिसम्मत स्तुतियों तथा मन्त्रों से स्तुति की ! (३०-३३) अथ महर्षिकृतभगवत्तुतिः मुनय ऊचुः य: पार्थिवानि गणयेद्रजांसि सुबहून्यपि । विष्णोर्वीर्याणि गणयेन्निःशेषं स पुमान्हरेः ।। ३३ ।। त्रेधा च निदधे पादान्भूमौ विष्णुस्त्रिविक्रमः । धर्माश्च धारयन्यस्तु तस्मै ते विष्णवे नम ।। ३४ ।।