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24 श्रीश्रीनिवासपरब्रह्मणे नमः श्रीवेङ्कटाचलमाहात्म्यम् द्वितीयो भागः श्रियःकान्ताय कल्याणनिधये निधयेऽर्थिनाम् । श्रीवेङ्कटनिवासाय श्रीनिवासाय मङ्गलम् ।। १ ।। प्रथमोऽध्याय नारदस्य सुमेरुशिखरस्थयज्ञवराहदर्शनम् ऋषय ऊचुः--- रौमहर्षण ! सर्वज्ञ ! पुराणार्थविशारद ! माहात्म्यं श्रोतुमिच्छामो गिरीन्द्राणां महीतले जूहि त्वं नो महाभाग के प्रथाना महीधराः ।। १ ।। नारद शिखर सुमेरुस्थित, दर्शन यज्ञवराह । मणिमण्डप महँ दिव्य शुचि, शोभित बहु सुग्नाह ।। १ ।। भू देवी का आगमन, देव वराह सभीप । धरणी प्रभु संवाद पुनि, शेषाचल आधीप ।। २ ।। स्वामी पुष्करिणी कथन्, सर्वतीर्थप्राधान्य । महिमाधार कुमार की, पाण्डब तुभ्ब नभान्य ।। ३ ।। देव तीर्थ भञ्जन सुफल, विनती धरा वराह । प्रभु धरणी सह गिरि गमन धृतिफल परम अथाह ।। ४ ।।