पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२६३

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245 ऋषियों ने कहा-हे रोमहर्षण ! हे पुराणार्थ विशारद ! हे महामति महा भाग श्री सूत जी कृपया आप यह बतावे कि पृथ्वी पर के सब गरीन्द्रों का माहात्म्य या है । हम सुनाना चाहते हैं, तथा हे महाभाग यह भी अब बचलाइये कि कौन कौन पर्वत प्रधान है ? । (१) नारदजी का यज्ञवराह दर्शन सूत उवाच एतमेव पुरा प्रश्नमापृच्छं जाह्नवीतटे । व्यासं मुनिवरश्रेष्ठं सोऽब्रवीन्मे गुरूत्तमः ।। २ ।। त्यास उवाच श्री सूत जी बोले :-श्री गंगा जी के तटपर पहले हमने भी यही प्रश्न भुनिश्रेष्ठ परमोत्तम गुरु व्यासजी से पूछा था, जिसका उत्तर उन्होंने दिया था । (२) पुरा देवयुगे सूत ! नारदो मुनिसत्तम । सुमेरुशिखरं गत्वा नानारत्नसुशोभितम ।। ३ ।। तन्मध्ये विपुलं दीप्तं ब्रह्मणो दिव्यभालयम् । दृष्ट्वा तस्योत्तरे देशे पिप्पलद्रुममुतमम् ।। ४ ।। सहस्रयोजनोच्छायं विस्तीर्ण द्विगुणं तथा । तन्भूले मण्डपं दिव्यं नानारत्नसमन्वितम् ।। ५ ।। वैडूर्यमुक्तामणिभिः कृतस्वस्तिकमालिकम् ।। ६ ।। नवरत्नसमाकीर्ण दिव्यतोरणशोभितम् । मृगपक्षिभिराकीर्ण नृवरत्नमयैः शुभैः ।। ७ ।।