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255 कुमारधारिका नाम सरसी लोकपावनी । यत्रास्ते पार्वतीसूनुः कार्तिकेयोऽग्नसंभवः ।। ६० । देवसेनासमायुक्तः श्रीनिवासार्चकोऽमले । तस्यां यः स्नाति मध्याह्न तस्य पुण्यफलं श्रुणु ।। ६१ ।। उन षट्तीर्थो का यथाकाल पापनाशकारक सर्व महत्म्य मैं तुमको बतलाता हूँ। सावधान हो सुनो । हे वसुन्धरे ! इस पर्वत पर कुमारधारिका नामक लोकपावन तथा परम पवित्र सरोवर है, जहाँ पार्वतीपुत्र, अग्नि सम्भव श्री कार्तिकेयजी देवसेना नामक निज पत्नी के साथ श्रीनिवास की अर्चना करते हुए रहते है। जी कोई उसमें कुम्भ मास के रविवार दिन को माघ की पौर्णमासी की महापुण्यतिथि में मघानक्षन्न युक्त होनेपर मध्याह्न काल में स्नान करता है, उसका फल, हे अमले तुम सुनो । (५८-६१) गङ्गादिसर्वतीर्थेषु यःस्नाति नियमाद्धरे ! । द्वादशाब्दं जगद्धात्रि तत्फलं समवाप्नुयात् ।। ६२ ।। योऽन्न ददाति तत्तीर्थे शक्त्या दक्षिणयान्वितम् । स ताबत्फलमाप्नोति स्नाने तूक्तं फलं यथा ।। ६३ ।। हे जगद्धात्रि ! गंगादि सब तीर्थो में नियमबद्ध होकर जो बारह वर्ष तक स्नान करता है; उसका फल इसमें उस दिन केवल एकबार स्नान करनेवाला पाता है क्षऔर जो कोई इस तीर्थ में यथाशक्ति दक्षिणा के साथ अन्नदान करता है, उसे भी उपर्युक्त फल ही मिलता है। (६२-६३) तुम्वताथमाहात्म्यम् मीनसंस्थे सवितरि पौर्णमासी तिथौ धरे । उत्तराफल्गुनीयुक्त चतुर्थे कालसंत्तमे ।। ६४ ।।