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256 पञ्चानामपि तीर्थानां तुम्बेऽथ गिरिगह्वरे । यः स्नाति मनुजो देवि पुनर्गभे न जायते ।। ६५ ।। तुम्बतीर्थमाहात्म्य हे देवि ! जो मनुष्य मीनस्थ सूर्य की पौर्णमासी तिथि में उत्तर फल्गुनी नक्षत्र होने पर चतुर्थकाल में उक्त पांचों तीथों में से इस गिरिगह्वरस्य तुम्बतीर्थ में स्नान करेगा, वह पुनः गर्भ से उत्पन्न नहीं होगा । अग्निवाहस्थिते भानौ चित्रानक्षत्रस । पूर्णिमाख्ये तिथौ पुण्ये प्रात:काले तथैव च । आकाशगङ्गासरिति स्नातो मोक्षमवाप्नुयात् ।। ६६ ।। आकाशगंगा महात्स्य मेष राशिस्थसूर्य का चित्रा नक्षत्र से योग होने पर पुण् पूर्णिमा तििथ के प्रात:काल में इस आकाशगंगा नामक सरिता में स्नान करने से मनुष्य मोक्ष पाता हैं । पाण्डवतीर्थमाहात्म्यम् (६४-६५) वृषभस्थे रवौ राधे द्वादश्यां रविवासरे । शुक्लेवाप्याऽथवा कृष्णे पक्षे भौमसमन्विते ।। ६७ ।। तीर्थे पाण्डवनाम्न्यत्र सङ्गमे स्नाति यो नरः । नेह दुःखमवाप्नोति परत्र सुखमश्नुते ।। ६८ ।।