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260 वज्रदंष्ट्राग्रनिभिन्न हिरण्याक्षगहाबल ! । युण्डरीकाभिताम्राक्ष सम्स्वनमनोहर ।। ८४ ।। श्रुतिसीमन्तभूषात्मन् सर्वात्मन् चारुविक्रम ! चतुराननशंभुभ्यां वन्दितायतलोचन ।। ८५ ।। सर्वविद्यामयाकार शब्दातीत नमो नमः । आनन्दविग्रहानन्त कालकाल नमो नमः ।। ८६ ।। इति स्तुत्वाऽचला देवी ऋवन्दे पादयोविभक्षम ।। ८७ ।। बालचन्द्रमा के समान नोकीले चमकदार दांतवाडे; महावल, पराक्रमी दिथ्य चन्दन लिप्ताङ्ग, तप्तकाञ्चनभव कुण्डलधारी, इन्द्रनीलमणि जटित स्वर्ण वल्यधारी, यज के समान दन्ताम्रों से महाबलवान, हिरण्याक्ष को विदीर्ण कर देनेवाले, पुण्डरीक के समान लाल अांखवाले, सामवेद के स्वर से मनोहर वेदान्त भूषण; सर्वात्मा विचित्र प्रभावाले ! ब्रह्मा तदा शंकर डे नमस्कृत विशाल नेत्रबाले, सर्व विद्यामयाकार तथा शब्दातीत हे भगवान ! आपको प्रणाम है । हे आनन्द बिग्रह ! हे अनन्त, हे काल के भी काद्ध ! आपको बारंबार प्रणाम है। इस प्रकार स्तुतिकर धरणीदेवी ने भगवान के ६९ग कभलों में प्रणाभ किया । (८२-८७) वराहस्य भगवतो धरण्या साकं शेषाचलागमनम् वन्दमानां समुद्वीक्ष्य प्रीत्युत्फुल्लविलोचनः । उद्धृत्य धरणीं देदीमालिलिङ्गाऽथ बाहुभिः ।। ८ ।। आघ्राय धरणीवक्त्रं वामाङ्गे सन्निवेश्य च । आरुह्य गरुडेशानं जगाम वृषभाचलम् ।। ८९ ।। मुनीन्दैर्नारदायैश्च स्तूयमानो महीपतिः । स्वामिपुष्कारणीतीरे पश्चिमे लोकपूजिते । ९० ।।