261 तदाचैस्तै: श्रीवराहो मुनीन्द्वैस्तत्र पूजितः । वैखानसैर्महाभागैर्बह्मतुल्यैर्महात्मभिः ! ९१ ।। पृथ्वी के साथ भगवान का शेषाचल पर जाना भगवान ने परमप्रफुल्लित नयन हो पृथ्वीदेवी को प्रणाम करते देखकर उसे उपर उठा, हृदय से लगा, चारों भुजा से आलिङ्गुल् कर लिया और प्ररणीदेवी के मुखकमल की सूधकर तथा अपने बायेबगल बैठकर गरुङ र सहार हो बृषभाचल पर चले गये ! लोक पूजित स्वाभिपुष्करिणी के पश्चिमी तीरपर नारदादि मुनियों तथा ब्रह्मतुल्य महात्मा महाभाग श्री वैखान्सों से श्री वराह भगदान वही पूजित हुए रहते है । (८८०९१) अध्यायफलश्धृति तद्दृष्ट्टा नारदः सूत ! मुनीनामुक्तवान्पुरा । तदेतदहमश्रौषं तत्र वै मुनिसंसदि ।। ९२ ।। यत्पृष्टोऽहं त्वया सूत माहात्म्यं धरणीभृताम् । मया तूत्तं यथावद्धि नारदाच्च पुरा श्रुतम् ।। ९३ ।। य इदं धर्मसंवादमावयो:सूत ! पावनम् । पठेद्वा देवपुरतो ब्राह्मणानां पुरस्तथा ।। ९४ ।। सर्वेषामपि वर्णानां शृण्वतां भक्तिपूर्वकम् । स प्रतिष्ठितमाप्नोति पुत्रपौत्रसमन्वितः । श्रुण्वतामपि सर्वेषां यदिष्टं तद्भविष्यति' ।। ९५ ।। व्यास जी बोले ! हे सूत जी ! प्राचीन काल में वह सब देखकर नारद जी ने मुनियों से कहा और उन मुनियों की सभा में हमने यही सब सुना था । हे सूत जी । आपने जो मुझ को धरणीदेवी के विषय में पूछा वही मैंने नारद जी से सुना हुआ
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