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262 आप से कहा । जो कोई हम लोगों का परमपवित्र यह धर्म संवाद देवमन्दिर अथवा ब्राह्मणों वा और सभी वणों के सामने भक्ति भाव से पढेगा सुनेगा वह पुत्र पौक्ष से संपन्न होकर अद्भुत प्रतिष्ठा लाभ करेगा और अन्यान्य कोई भी जो इसे सुनेगा, वह भी अपना सारा अभीष्ठ प्राप्त करेगा । (९२-९५) इति मे भगवान्व्यासः प्रोवाच मुनिसेवितः । यथाश्रुतं मया पूर्व कृष्णद्वैपायनाद्गुरोः ।। ९६ ।। तत्तथा सर्वमेवात्र मयाप्युक्तं मुनीश्वराः !' श्रुत्वा सूत वचस्त्वित्थं ते प्रीतमनसोऽभवन् ।। ९७ ।। श्री सूत जी बोले ! हे मुनीश्वरो ! जो कुछ मैंने भी भगवान कृष्ण द्वैपायन श्री गुरुदेव व्यास जी से जैसे सुना टीक वही एवं उसी प्रकार कहा। इसी तरह मुनिगण से सेवित श्री व्यासजी ने मुझसे कहा । मुनिगण यह सूत जी के वचन सुन अत्यन्त प्रसन्न होकर कहने लगे । (९६-९७) ऋषय ऊचुः :- सूत ! त्वयोक्त भुवि पर्वतेषु पुण्येषु पुण्यस्य महीधरस्य । माहात्म्यमस्माकभहीन्द्रनाम्नः पापापहं मोक्षफल प्रदायकम् ।। ९८ ।। ततो वृषाद्रिं सम्प्राप्य वराहो धरणीयुतः । किमुक्तवान् धरण्यै स तन्नो बूहि महामते ।। ९ ।। ऋषियों ने कहा-हे महाभाग सूत जी ! आपने हम लोगों को पापहारक भोक्षफलदायक पृथ्वीतल पर के परमपुण्ष तथा पर्वतों में श्रेष्ठ शेष नामक पर्वत का माहात्म्य कहा है; किन्तु अब कृपया यह बत:वे कि पृथ्वी देवी के साथ वराह् भगवान ने वृषाद्रि पर जाकर पृथ्वी देवी से क्या क्या कहा? (९८-९९) इति श्रीवाराहपुराणे भूगोलोपाख्याने धरणीवराहसंवादे श्रीवेङ्कटावलमाहात्म्ये उत्तरभागे नारदस्य सुमेरुशिखरस्थयज्ञवराह दर्शनप्राप्त्यादिवर्णनं नाम प्रथमोऽध्यायः