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270 श्री वराहदेव बोले-हे पृथ्वी देवी ! पहले यह अगस्त्य ऋषि ने आकर सनातन भगवान की बारह वर्ष तक आराधना कर प्रसन्न करके भगवान की सान्निध्य तथा प्रत्यक्ष हो जाने के लिये बारंबार वर मांगा । ऐसा कहने पर श्री भूमि सहित हृषीकेश भगवान बोले “मैं तुम्हारे कारण सभी लोगों के समीप दृश्य होऊँगा, किन्तु हे देवर्षि ! यह विमान कभी दृश्य न होगा। मैं अथश्य आकल्पान्त यहाँ मनुष्यों के दृश्य रहूँगा, इसमें सन्देह नहीं है। यह सुनकर ऋषि परम प्रसन्न हो अपने आश्रम को लौट आये । (६-९) ततश्चतुर्भुजो देवः स दृश्योऽभून्नरादिभिः । विमाने मुनिचिन्त्येस्मिन्नासिता च तथोत्तरम् ।। १० ।। आराध्यमानः स्कन्देन् वायुना सेवितस्सदा । चतुर्भुज भगवान उसी समय से स्कन्द तथा वायु से सेवित होकर, केवल मुनियों से विन्सनी उस विमान में सभी मनुष्यों के दृश्य होकर रहने लगे । (१०) मिस्रवर्मणः आकाशराजाख्यसुतोत्पतिवर्णनम् एवं गते महाकाले चतुर्युगसमन्विते ।। ११ ।। अष्टाविंशे तु सञ्जाते द्वापरान्ते वसुन्धरे । युद्धे च भारतेऽतीते तिष्ये सति युगे तथा ।। १२ ।। विक्रमाकादयो भूपाः शकाश्शूद्रादयस्तथा । गमिष्यन्ति स्वर्गलोकं मामज्ञात्वा वरानने ।। १३ .।। ततस्सोमकुलोद्भूतो मित्रवमई महारथः । तुण्डीरमण्डले राजा नारायणपुरे वसन् ।। १४ ।। भविष्यति वरारोहे ! महाभाग्योदयो महान् ।