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271 चार महायुगों का महाकाल व्यतीत हो जाने पर हे वसुन्धरे ! धापर के अन्त तथा अट्ठाइस कलि के व्यतीत एवं भहाभारत युद्ध के समाप्त हो जाने पर, विक्रमार्क आदि अनेक शक तथा शूद्रक राजा मुझे न जानकर ही स्वर्ग चले जायेंगे । पीछे तुण्डीर-भण्डल के नारायणपुर में वास करनेवाले सोमवंश में मित्रवर्मा नामक महाभाग्यवान महारथी राजा होंगे । (११-१४) तस्मिच्छासति भूलोक धर्मेण पृथिवीपतौ ।। १५ ।। अकृष्टपच्या पृथिवी सर्वसस्यविभूषणा । निरीतिकोऽभवत्सर्वो जनो धर्मसमन्वितः ।। १६ ।। तस्य पत्नी समभवत्पाण्ड्यकन्या मनोरमा । तस्य जज्ञे कुलोत्तंसो वियन्नामा सुतोऽस्य वै ।। १७ ।। तस्य पत्नी तु धरणी नाम्नाऽसीच्छकवंशजा । तस्मिन् राज्यं विनिक्षिप्य भित्रवर्मा नृपोत्तमः । ययौ तपोवनं पुण्यं वेङ्कटाद्रेः समीपत ।। १८ ।। हे वरारोहे ! उस धर्मात्मा राजा के धम्र्म से भूलोक का शासन करते समय पृथ्वी मण्डल बिना जोते ही उपजानेवाला तथा सर्व सस्य सम्पन्न हुआ था। । उसकी सभी धार्मिक प्रजा ईति या व्याधिरहित रहती थी । पांड्यकन्या मनोरमा देवी उसकी पत्नी थी । उससे आकाश नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई। इस आकाश कुमार की स्त्री शकवंशजा धरणीदेवी थी । नृपोत्तम राजा मित्रवर्मा इसी आकाश कुमार पर राज्यभार देकर परमपुण्य वेङ्काद्रि के तपोवन में चले गये। (१५-१८) धरणीतलात्पद्मावत्युपतिक्रमः आकाशनामा तु महान् राजाऽभूत्सार्वभौमक । एकदारव्रतो राजा धरणीसक्तचेतनः ।। १९ ।।