पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२९

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

१ ? रास्ता तयकर गोमती नदी के तट पर आये । उसके दक्षिः भाग में माठ योजन दूर पर तथा पूर्व समुद्र से पाँच योजन पश्चिम रुक्मा नदी के ऽन्तर में पुण्यजलों से समकीर्ण प्रदेश में आकर गरुड़ जी के आने की प्रतीक्षा में ठहर गये । (७-९) वैनतेयोऽपि परमं धाम गत्वा ददर्श ह ।। १० ।। अप्राकृतममेयं च सर्वरत्नमयं गिरिम् । हिरण्मयभहाश्धृङ्ग पञ्चोपनिषदात्मकम् !! ? ? !! पुन्नागचम्पकाशोकतालह्निन्तालशोभितम् सुरद्रुममुखैर्तृक्षेरन्यैः काञ्चनरूपकैः ।। १२ ।। शोभितं पक्षिसङ्घश्च शुककोकिलहंसकै श्रवणानन्दजनकमधुररालापस्तश्रमः ।। १३ ।। मल्लिकाभालतीभिश्च नन्द्यावतदिभिस्तथा । लताभि: पुष्पिताग्राभिर्दिव्थसौरभशालिभिः ।। १४ ।। सिंहशार्दूलमातङ्गशरभक्रोडवानरै शोभितं किन्नरीभिश्च गायत्किन्नरपङ्क्तिभिः ।। १५ ।। अनेकनिईराकीर्ण मानसाह्लादकारकम् । मुक्तैर्नित्यैः कामरूपैर्नानारूपैश्च सेवितम् ।। १६ ।। नारायणगिरिं नाम्ना क्रीडाद्रिं परमेष्ठिनः । योजनत्रयविस्तारं त्रिंशद्योजनमायतम् ।। १७ ।। शेषाकारं हरेः शेषं शेषिणं सर्वदेहिनाम् । इधर गरुङ जी ने भी जाकर परमध{म को एकदम अप्राकृत तथा सब रत्नों से परिपूर्ण ; स्वर्णमय ऊँचे-ऊँचे शिखरयुक्त } . उपनिषदों में सर्वश्रेष्ठ जो पांच उपनिषद हैं, उनके स्वरूप, पुंनाग, चम्पा, अशोक, ताड, हिंताल-अत्यन्त मनोहर मनोहर देवदारु आदि नाना भाँति के सुवर्णमय सुन्दर वृक्षों से परिपूर्ण ; शुक, कोकिल. कलहंस आदि सुन्दर, सुमधुर, सुनने में आनन्ददायक आलाप, तान, गान,