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273 उस लड़की को आश्चर्यान्वित हो देख तया लाकर “ यह लडकी मेरी ही हैं ऐसा बारम्बार कहते हुए मन्त्रियों के साथ राजा झानन्दित हुए, तब आकाशबाणी ने कहा कि सत्य ही यह आप ही की पुत्री है : अतएव इस सुलोचना को तुम पाली । तदनन्तर प्रसन्न होकर राजा ने अपने महल में प्रवेश किया और अपनी स्त्री धरणीदेवी को बुलाकर कहा कि दैवताक्षों से दी हुई पृथ्वीतल से उत्पन्न मेरी इस कन्या को देखो । हम दोनों अपुत्रों की यही पुत्री होगी, ऐसा कह आकाश राजा ने परम प्रीति से उसे देवी के हाथों में दे दिया । (२२-२६) आकाशराजस्य धरण्याख्यपत्न्यां वसुदानाख्यसुतोत्पत्ति तस्यां गृहं प्रविष्टायां धरणी गर्भमादधौ । वियनृपश्च सुप्रीतो वीक्ष्य स्निग्धां विलोचनाम् । उवाच फलिता सुर्भुर्लता सान्तनिकी च मे ।। २७ ।। अथ सा धरणी देवी काले कमललोचना । सुप्रशस्ते मुहूर्ते च स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु ।। २८ ।। गृहेषु सुषुवे पुत्रं मेषस्थे च दिवाकरे । देवदुन्दुभयो नेदुः पुष्पवृष्टिगृहेऽपतत् ।। २९ ।। ववौ वायुस्सुखस्पर्शस्तज्जन्म दिवसे तदा । पुत्रसूतिप्रवक्तृणां सुप्रीतः पुत्रजन्मनि ।। ३० ।। सर्वस्वदानमकरोत् छत्रचामरवर्जितम् । कपिलाकोटिदानं च वृषभाणां शताधिकम् ।। ३१ ।। दिवसे द्वादशे पुण्यं जातकर्मादिकाः क्रियाः । चकार नामधेयं च वसुदान इति स्वयम् ।। ३२ ।।