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274 आकाशराजा की धरणी नामक पत्नी से वसुदान नामक पुत्र की उत्पत्ति उसके घर में प्रवेश करते ही धरणी देवी ने गभ धारण क्रिया । सुन्दर नेत्रवाली देवी को देखकर आकाश राजा परम प्रसन्न हो वोले कि आज मेरी सन्तान हेतु शोभनभ्रवाली सुन्दर लता सफल हुई। तब फमल के समान नेत्रबाली उस धरणी देवी ने अत्यन्त शुभ मुहूर्त में पाँचों शुभ ग्रहों के उच्च स्थान में बैठने पर तथा मेष की संक्रांति में पुत्र रत्न प्रसव किया । देवताओं की दुन्दुभियाँ बजा तथा घर में पुष्पों की वृष्टि हुई। उसके जन्म दिन में सुखस्पर्श वायु बहने लगी । पुत्र जन्म के उपलक्ष में पुत्रोत्पत्ति के बारे में पूछनेवाले सवों को प्रसन्न होकर स्वयं राजा ने, छन्न तया चामर (राजचिन्ह) को छोड़कर सर्वस्वदान कर दिया । करोड़ों कपिल गायों एवं सीसे अधिक साढ बैलों का दान किया और पवित्र बारहने दिन जातकर्मादि क्रिया कर स्वयं राजा ने बसुदान, ऐसा नामकरण भी किया । (२७-३२) श्री बराह उवाच :- आकाशतनयो देवि ! वसूदानो मनोरम । ववृधे दिवसैबलः शुक्लपक्ष इवोडुराट् ।। ३३ ।। उपनीतो विनीतोऽसौ गुरुभिर्बह्मपारगैः । पितुरस्त्राणि शस्त्राणि मन्त्रवत्सोऽप्यशिक्षत ।। ३४ ।। चतुष्पादं धनुर्वेदं साङ्गोपाङ्गमधीतवान् । पिता तेनातिबलिना दुराधर्षः परैरभूत् ।। ३५ ।। आकाश इव निष्पङ्को ग्रीष्मे भानुमता युतः । वैशाख इव मध्याह्न दुस्सहो दुनिरीक्षकः ।। ३६ ।। श्री वराह भगवान बोले- हे देवि ! आकाश राजा का परम मनोहर लड़का बालक वसुदान दिनों दिन शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के समान बढ़ने लगा । परम