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275 विनीत वह ब्रह्मवेत्ता गुरुओं से उपनीत हुआा । पिता से अस्त्रों तथा शस्त्रों को उसने मन्त्रपूर्वक सीख लिया । चार शाखा के धनुर्वेद को भी सांगोपांग पढ़ लिया । उस परम बलथान पुत्र के कारण पिता (आकाश राजा) शतृओं से दुराधर्ष, तथा वैशाख मास के दोपहर में सूर्य से युक्त आकाश के साल निर्मल और दुनिरीक्ष्य हो गये। (३३-३६) इति श्रीवाराहपुराणे भूगोलोपाख्याने धरणीवराहसंवादे श्रीवेङ्कटाधलमाहात्म्ये उत्तराधे अगस्त्यप्रार्थनया भगवतः सर्वजनदृग्गो वरत्वादिवर्णनं नाम तृतीयोऽध्यायः ।