पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/२९७

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279 नारद जी बोले-हे वारुवदने ! तेरे लक्षण तुझसे कहता हूँ, सुनो । हे सुन्दर भृकुटीवाली ! तुम्हारे दोनों पैर सुन्दर स्थिर लाल कमलदल के समान हैं, पैर की अंगुलिया एकरुप लील-लाल ऊँचे-ऊँचे नखयुक्त हैं । दोनों गुल्फे समान तथा गूढ़ हैं। दोनों जांधे रोमही तथा सुन्दर हैं । दोनों छुटने समान तथा चिकने हैं। दोनों ऊरु सम एवं क्रम से सुडौल हैं ! ि नितम्ब (चुत्s) मांस पूण, फैले, मोटे, पुष्ट तथा दर्शनीय है । नाशो मंडलवाली तया गहरी है । उधर अतिसूक्ष्म है । तेरी दोनों वगलें सफेद हैं । मध्य भाग (कन्नट, पेट) सुन्दर त्रिवली रेखा युक्त तथा रोमश्रेणि सुशोभित है ! दोनों स्तन पीन, बड़े बड़े सधन चिकने उठे हुए तथा उनकी चूंचिया धसी हुई हैं । तेरे दोनों हाथ लाल कमल की प्रभा युक्त, पद्मरेखा युक्त, पतले-पतले सुन्दर पोरयुवत, अविरल समान अंगुलिया युक्त तथा शुक के ठोर के समान आकारवाले नख पंवित युक्त सुशोभित हो रहे हैं । तेरी दोनों भजारा लम्बी, कोमल तथा फूलों के डंडों के समान हैं । तेरी पीठ वेदी के समान सीधी तथा वपकी हुई सरल कमएवाली है । तेरा कंठ लाल, लम्बा तथा सुन्दर है। तेरे कन्धे नीचे नये हुए तथा सुन्दर हैं । मुख प्रसन्न एवं सदा निष्कलङ्क चन्द्रमा के समान प्रभवाला है ? दोनों कोलकुण्डरलों से प्रकाशित और सुवर्ण के शीशे के समान हैं 1 है सुन्दर भुखवाली ! तेरी नासिका तिल के फूल के समान आकारकाली है, तेरा ललाट पट निष्कलङ्क, अष्टमी के चन्द्रमा के समान, मनोहर एवं नीले अलकावलियों से सुशोभित दीखता हैं । तेरा मस्तकसम तथा गोल, चिकना, चौड़ा एवं केश:ाशयुक्त है । नन्द मुसकान युक्त सुन्दर दांतवाल, कुन्दरु के समान ओढ से युक्त तेरा श्रुख तो विष्णु के ही योग्य होगा, यही मेरी निश्चित बुद्धि है। तेरी दक्षिणावत नाभी गंगाजी के भंवर के समान है; तुम क्षीरसागारोत्पन्ना साक्षात लक्ष्मी के समान दीखती हो । (७-१८) पद्मावत्याः स्वसखीभिस्साकं पुष्पवाटिकागमनम् श्रीवराह उवाच :- इत्युक्त्वा पूजितस्ताभिनरिदोऽन्तर्दधे तदा । एत च्छूत्वाऽथ तत्सख्यस्ताभूचुः पद्मिनीं सखीम् ।। १९ ।। वनं गच्छाम पुष्पार्थ वसन्तस्समुपागतः । कणिकाराश्च वृताश्च चम्पकाः पारिभद्रकाः ।।