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280 पालाशाः पाटलाः कुन्दा रक्ताशोकाश्च पुष्पिताः । पद्मिन्यः िसन्धुवाराश्च मालत्यो यूथिकालताः ।। २१ ।। कल्हारकरवीराश्च सङ्कर्षादिव पुष्पिताः । पुष्यापचयनं कुमर्मो वनेऽस्मिन्सुमनोहरे ।। २२ ।। इत्युक्त्वा ता वनं जग्मुः आकाशतनयायुताः । श्री वराह जी बोले-यह बोलकर तथा उससे पूजित ही नारद जी अन्तर्धान हो गये। यह सुनकर उसकी सखिया उस पदिनी सखी से बोली कि वसन्त था गयी है। हम सब फूलों के लिए जंगल जाती है। कर्णिकार, आम, चम्पा, परिभद्रक पलाश, पांडर, कुन्द रक्ताशोक, पद्मिनी, सिन्दुवार मालती, यूथिकालता, कल्हार करबीर आदि सभी फूल मानो स्पर्धा से फूल गये हैं । फूलों के चुनने का कार्य हम सब इस मनोहर वन में करेंगी, यह कहकर वे आकाश राजा की कन्या के साथ वन में चली गयी । (१९-२३) पुष्पाण्याहरमाणास्तु विचरन्त्यस्ततस्ततः ।। २३ ।। कश्चिद्वजेन्द्रं ददृशुः शुभ्रदत्तद्वयोज्ज्वलम् । गण्डभित्तितलोद्भूतमदधाराद्वयोज्ज्वलम् ।। २४ ।। उन्नतं करिणीयूथैः समुपेतं रजोज्ज्वलम् । फूत्कारिपुष्करप्रोद्यच्छीकरापूरिताननम् । दृष्टवा चोद्विग्नहृदया वनस्पतिमुपाश्रिताः ।। २५ ।। फूलों को तोडती हुई, इधर उधर घूमती हुई उन सर्वोों ने दो श्वेत और उज्ज्वल दांतवाले, गण्डस्थल से उत्पन्न दो मदधारा युक्त, हथिनीयूध से युक्त ऊँचा, उजली धूलि से भरा हुआ, सूण्ड द्वारा कुल्ला पुचकारते हुए तथा जल से पूरित मुखवाला कोई गजेन्द्र देखा और देखकर उद्विग्न हृदय हो वे सभी वनस्पति के निकट चली गयी । (२४-२५)