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284 ऐसे उनके वचन का सुनकर धरणी देवी की पुत्री से प्रेरित होकर पद्मावती नाम सखी पर्वत निवासी निषाद से दोली हे वीर ! राजा आकाश की पुत्री पृथ्वी तल से उत्पन्न तया पद्मिनी नाम से प्रसिद्ध यह हम लोगों की नायिका है । हे सुन्दराकृतिवाले! आप किस नामवाडै तथा किसके पुत्र हैं? आपकी जाति क्या है? कहाँ वापका घर है? आप यहाँ क्रिासलिये आये हैं । (४०-४२) इति पृष्टः स ताः प्राह मन्दस्मितमुखाम्बुजः। दिवाकरकुलं प्राहुरस्माकं तु पुराविदः ।। ४३ ।। यस्य नामान्थनन्तानि पावनानि मनीषिणाम् । वर्णतो नामलश्चापि कृष्णं प्राहस्तपस्विनः । । ४४ ।। ब्रह्मद्विषां सुरारीणां यस्य चक्र भयावहम् । यस्य शंखध्वनिं श्रुत्वा मोहमीयुर्हि वैरिणः ।। ४५ ।। यस्य वै धनुषस्तुल्यं धनुनैवामरेष्वपि । तं मां वीरपतिं प्राहुर्वेङ्कटाद्रिनिवासिनम् ।। ४६ ।। तस्मादद्रितटात्सोऽहं निषादैरनुगैर्तृतः । मृगयार्थ हयारुढो युष्मावकं वनमागतः ।। ४७ ।। मयाप्यनुदुतो कश्चिन्मृगो वायुगतिर्ययाँ । तमदृष्ट्वा वनं पश्यन्दृष्टवान्सुभगामिमाम् ।। ४८ ।। कामादिहाऽऽगतोऽहं वो मया किं लभ्यते त्वियम्? । ऐसा पूछने पर वह मंद मंद हँसी युक्त मुखकमलवाले उनसे बोले। मनीषी तथा तपस्वी सब पुराविद गणों ने हम लांथों का सूर्यवंश बताया है और जिसके नाम पवित्र तथा अनन्त हैं , जिसको रंग तथा नाम दोनों से तपस्वीगण कृष्ण कहते हैं, वेब ब्राह्मणों के द्वेषियों तथा देवताओं के शत्रुओं के लिए जिसका चक्र महा