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289 ‘एवं मनोहरा का सा तवापि पुरुषोत्तम ? तामवोचदूषीकेशो वक्ष्यामि श्रुणु तत्वतः ।। १६ ।। श्री वराहजी बोले-उसके उन वचनों को सुनकर भगवान जीर से निश्वास लेने लगे और सांस लेते हुए भगवान से पुनः प्रसन्न व्कुलमालिका ने कहा कि हे पुरुषोत्तम ! आपके श्री मन को हरण करने वाली व कौन हैं ? उससे हृषीकेश भगवान बोले- मैं कहता हूँ, सद्भाव से सुनो ! श्रीनिवासोक्तपद्मावतीपरिणयकारणानि श्रीभगवानुवाच :- पुरा त्रेतायुगे पुष्ये रावणं हतवानहम् । तदा वेदवती कन्या साहाय्यमकरोच्छूियः ।। १७ ।। सीतारूपाऽभवल्लक्ष्मीर्जनकस्य महीतलात् । गते मयि तु मारीचं हन्तुं पञ्चवटीवने ।। १८ ।। ममानुजोऽपि मामेव सीतया चोदितोऽन्वियात् । तदन्तरे राक्षसेन्द्रो हर्तु सीतामुपाययौ ।। १९ ।। पद्मावती के परिणय के कारण (१५-१६) श्री भगवान बोले-प्राचीनकाल पुण्य त्रैतायु में मैंने रात्रण को भारा था । उस समय वेदधती कन्या ने क्षमी की सहायता की थी । वही लक्ष्मी पृथ्वीतल से उत्पन्न होकर जन्क को सीता रूप से प्राप्त हुई । पञ्चवटी वन में मरीच की मारने के लिए मेरे चले जाने पर सीता से प्रेरित ही मेरे भाई भी मेरे ही पीछे पीछे आये। इसी बीच सीता को हरने के लिए राक्षसेन्द्र अ7 पहुँचा । (१७-१९) अग्निहोत्रगतो वह्निः तं ज्ञात्वा रावणोद्यभम् । आदाय सीतां पाताले स्वाहायां सन्निवेश्य च ।। २० ।। 37