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पलाश, मदार, सेमर, बीजोरा, पुन्नाग, नारंगी, लिची, नारियल मुनिया, मल्लिका, मालती, कुन्द, यूथिका, केतकी, करवीर, कमल, २ जरंभा चा राजकेला से युक्त, मोर, हाथी, गरुड, सुग्गे तथा सारस से भरा, भौरे के निविड झङ्कार से युक्त, भनोहर-मनोहर बाग-बगीचों को देखती हुई, नदी किनारों पर आनन्दित होकर, फूलों के उत्तरी रास्ते से सदा गङ्झा से घिरी हुई इन्द्रपुरी के समान अरणी नामकी नदी से घिरी हुई आकाशराजा की नगरी में जाकर वहाँ अपना थयोचित (४५-५२) श्रीवराह उवाच इत्यादिश्य सुराधीशः सखीं तां बकुलाभिधाम् । विसृज्य शयने शुभ्र स शिश्ये श्रीसमन्वितः ।। ५३ ।। श्री वराह जी बोले-ऐसी आज्ञा देकर सुरात्रीश भगवान उस वकुलमालिका सखी को बिदाकर स्वयं श्री लक्ष्मीजी के साथ, उस सुन्दर शैयापर सो गये । (५३) प्रणम्य देवदेवेशं सखी वकुलमालिका । गुञ्जामणिसभाकारं रक्ताश्धमधिरुह्य सा ।। ५४ ।। यथोक्तमार्गेण ययौ पश्यन्ती विविधान्मृगान् । भत्तेभान्पर्वताकाराञ्छवेतदन्तविभूषितान् ।। ५५ ।। करिणीयूथसहितानुदकादानतत्परान् । सिंहाञ्छवेतघनप्रख्यान् सिंहीयूथैरनुदृतान्।। ५६ ।। शार्दूलक्षञ्च खङ्गाञ्श्च शरभान् गवयान् मृगान् । कृष्णसारांश्च गोमायून् शशांश्च प्रियकानपि ।। ५७ ।। सारसाञ्श्च मयूराञ्श्च मार्जारान्वनगोचरान् । वृकाञ्छुकान्सूकाराञ्श्च सुवाचः पक्षिणस्तथा ।। ५८ ।।