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299 वकुलमालिका के प्रति पद्मावति सखियों की वृति स्त्रियाँ बोली :-हम सब चक्रवर्ती आकाश राजा की अन्तःपुरवासिनी तथा उनकी पुत्री पद्माला (पद्मावती) की सखी हैं। पहले राजपुत्री को आगे कर, दूसरे बन में हम लोग चली गयी थी, और वहाँ फूल तोडती हुई, राजपुत्री के लिए व्याकुल तथा एक वृक्ष की जड़ के तले बैठी हुई, हम लोगों ने इन्द्रनीलमणि के समान श्यामल, हृदय में लक्ष्मी जी को रखनेवाले, मन्द भन्द मुसकान युक्त मुखवाले, सुन्दर, लम्बी तथा मोटी दो भुजावाले, शुद्ध पीताम्बर वारी, चमकाते हुए सोने के धनुष-बाण एवं सोने के मुकुट, हार, विजायठ आदि से विभूषित एक पुरुष को देखा । (१-४) तं तु पद्मालया दृष्ट्वा सखी कमललोचनम् ।। ५ ।। दृतहेमनिभाकारा “पश्य पश्ये' ति साऽब्रवीत् । पश्यन्तीनां तदाऽस्माकं गतोन्तर्धानमाशु स । सा सखी मूर्छिताऽस्माभिनीता राजगृहं ततः ।। ६ ।। इस कम लाक्ष पुरुष को देखकर पिघले हुए सोने के समान शरीरवाली पद्यालया देवी ने देखो ! देखो !! ऐा कहा । वह हम लोगों को देखते-ही देखते शीघ्र अन्तर्धान हो गये और पधालया सखी मूच्छित हो गयी तथा पीछे हम लोगों से मकानतक पहुँचवायी गयी । (५-६) पद्मावतीमुद्दिश्य दैवज्ञ प्रति वियद्राजकृतप्रश्नादिः दृष्ट्वाऽस्वस्थां नृपः पुत्रीमपृच्छदैवचिन्तकम् । 'वद विप्रेन्द्र ! पुत्र्या मे ग्रहचारफलं मुने' ।। ७ ।। बृहस्पतिसमो विप्रो विचार्याऽऽत्मनि खेचरान् । 'अनुकूला ग्रहाः सर्वे तव पुत्र्या नृपोत्तम ।। ८ ।। किन्तु नित्यं ग्रहफलं किञ्चित् भ्रान्तिकरं नृप' ।