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300 ज्योतिषी से पद्मावती के बारे में राजा द्वारा बातों का पूछा जाना पुत्री को अस्वस्थ होकर ज्योतिषी से राजा ने पूछा-हे विप्रेन्द्र मुनि! मेरी पुत्री के ग्रहगोचारादि फल बताइये । अपने मन में ग्रहों को विचारकर बृहस्पति के समान वह विद्वान ब्रःह्मण बोला कि हे नृषोत्तम ! तुम्हारी पुत्री के सभी ग्रह अनुकूल हैं, किन्तु हे राजन नित्य के ग्रफल कुछ कुछ भ्रमोत्पादक है । (७-९) तमुवाच पुनर्धमान्प्रश्नकालं विचार्य च ।। ९ ।। छायां गुणित्वा लग्नं च फलानि च विचार्य च । लग्ने लग्नाधिपश्चन्द्रः केन्द्रे चैव बुहस्पतिः ।। १० ।। निद्राति दिनपक्षी तु प्रश्नपक्षी तु राज्यगः । शृणु राजन्फलं तस्य स्वास्थ्यमेव भविष्यति ।। ११ ।। उस बुद्धिमान ने प्रश्नकाल को विवार, छाया तथा लग सभी की गणना कर उसके फल को विचारकर कहा कि लग्नकाल में लग्माधिपति चन्द्रमा तथा केन्द्र में बृहस्पति, दिन के पक्षी निद्रा में तथा प्रश्नवाल के पक्षी राजकारक हैं। हे राअन! इसका फल आरोग्य ही होगा ! (१०-११) उत्तमः पुरुषः कश्चिदागतः कन्यकां प्रति । तं दृष्ट्वा मूच्र्छिता पुत्री तेन योगं समेष्यति ।। १२ ।। तेनैव प्रेषिता काचिदागमिष्थति कन्यका । सा तु वक्ष्यति यद्वाक्यं तद्धितं ते भविष्यति ।। १३ ।। तत्कुरुष्व महाराज ! सत्यं सत्यं वदाम्यहम् । किं च सर्वार्थदं यत्तु सर्वव्याधिविनाशनम् ।। १४ ।। वक्ष्यामि तत्कुरुष्वाद्य पुत्र्यास्तत्र सुखावहम् । कारयागस्त्यलिङ्गस्य ब्राह्मणैरभिषेचनम्' ।। १५ ।।