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301 कोई उत्तम पुरुष इस कन्या के पास आया या, उसीको देखकर यह राजपुत्री मूपिछत हो गयी थी, और उसी का सहयोग प्राप्त करेगी ! उसी पुरुष से भेजी हुई कोई कन्या आवेगी और वह जो कुछ बात कहेगी, वह सब तुम्हें हितकारक होगी । हे राजन ! मैं सत्य-सत्य कहता हूँ, आप यही करे, जो सवयं को देनेवाला तथा सर्व व्याधियों का नाशकरनेवाला है, मैं आपकी पुत्री के लिए बही सुखोत्पादक बातें कहता हूँ। आप आज ऐसा करें कि अगस्त्य लिङ्ग को ब्राह्मणों द्वारा अभिषेकादि करवाइये । राजा से इतना कहकर वह दैबज्ञ ज्योतिषी घर (१२-१५) दैवज्ञोक्त्याऽगत्यलिङ्गार्चनाय विप्रादिप्रेषणम् इत्युक्त्वाथ गृहं यातो राजानं दैवचिन्तकः । आकाशराजोऽपि तदा विप्रानाहूय वैदिकान् ।। १६ ।। अभ्यच्यऽऽज्ञापयामास 'गत्वा देवालयं द्विजाः । महाभिषेकं शम्भोश्च कुरुध्वं मन्त्रपूर्वकम्' ।। १७ ।। इत्यनुज्ञाप्य तानस्मानाहूयाभ्यवदच्छुभे ! । महाभिषेकसम्भारान्सम्पादयत कन्यकाः ।। १८ ।। इत्याज्ञप्ता नृपेणैवं वयं देवालयं गताः । ब्रूहि त्वं सुभगेऽस्माकं त्वदागमनमञ्जसा ।। १९ ।। कुतोऽसि कस्य वाऽर्थेन क्व वा जिगमिषा हिते ? । दिव्याश्धमधिरुह्यमं देवलोकादिवागता ।। २० ।। दैवज्ञ के कथनानुसार अगत्यलिङ्ग की पूजा के लिए ब्राह्मणों को भेजना तब आकाश राजा ने भी वैदिक ब्राह्मणों को बुला, उनकी पूजाकर आज्ञा प्रदान किया कि हे ब्राहुणो ! आप लोग देव मन्दिर में जाकर शंकर का मद्दाभिषेक