पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३२०

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मन्त्र पूर्वक करें। उन सबों को इतनी आज्ञा देकर पुनः उन्होंने हम लोगों से बुलाकर कहा —' हे कन्याओं ! महान्निषेक के सभी संभारों का सम्पादन करो । राजा से यह आज्ञा पाकर हम समी देवालय आयी हैं । हे सुन्दरी ! अब तुम अपने आगम के बारे में श्रीघ्र कहो तुम कहा से तथा किसके लिए आई ही ! तुम्हारी कहाँ जाने की इच्छा है तुम इस दिव्य घोड़े पर चढ़कर देवलोक से प्रायी हुई के समान मालूम होती हो । (१६-२०) 302 श्रीवराह उवाच : इति ताभिस्तदा पृष्टा हृष्टा वकुलभालिका । प्रोवाच वाचं मधुरां हर्षयन्तीव बालिकाः ।। २१ ।। वकलमालिकोवाच : श्री वराह जी बोले :-इस प्रकार उनसे पूछे जाने पर धकुलमालिका प्रसन्न होकर उन बालाओं से मधुर वचन बोली । (२१) श्रीवेङ्कटाद्रेः प्राप्ताऽहं नाम्ना वकुलमालिका । धरणीं द्रष्टुकामाऽहमारुह्यमं तुरङ्गमम् ।। २२ ।। द्रष्टुं शक्या भवेद्देवि ! किमु तत्र नृपालये' । इति तस्याः वचश्धृत्वा ताः प्रोचुर्तृपकन्यकाः ।। २३ ।। अस्माभिः सहिता त्वं वै द्रक्ष्यसे धरणीं शुभे । इत्युक्ता सा ततस्ताभिरागतानृपमन्दिरम् ।। २४ ।। वकुलमालिका बोली-वकुलमालिका नामवाली मैं श्री वेङ्कटाद्रि से धरणी देवी को देखने की इच्छा से इस घोडे पर चढकर आयी हूँ । हे देवि ! क्या उस राजभवन में वह देखी जा सकती है ? उसके उस वचन को सुनकर वे कन्याएँ बोलीं कि हे सुभगे ! हम लोगों के साथ-साथ तुम धरणी देवी को देख सकोगी । उनके ऐसा कहने पर वह उनके साथ राजमन्दिर में आयी । (२२-२४)