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303 धरणीकृतप्रश्नस्य पुलिन्दिनीप्रतिवचनम् आगच्छन्तीषु तास्वेवं धरणी तु पुलिन्दिनीम् । आयान्तीं वीथिकायां सा सगुञ्जाशङ्कभूषिताम् ।। २५ ।। शिशु स्तनन्धयं पृष्ठे बद्धा वस्त्रांचलेन वै । 'वदामि सत्यं शृणुत भूतं भव्यं भावष्यत्रकम् ' ।। २६ ।। वदन्तीं वीथिवीथीषु तामाहूय शुचिस्मिता । स्वर्णशूर्प समादाय तस्मिन्मुक्ता निधाय च ।। २७ ।। त्रिप्रस्थमात्रांस्त्रीन् राशीन्कृत्वा तस्यै निधाय च । 'बद सत्यं पुलिन्दे त्वमेष्यद्वा भूतमेव वा'।। २८ ।। इत्येवं धरणीदेवी पृच्छन्ती तां स्थिताऽभवत् । धरणी के प्रश्नों का पुलिन्दिनी से उत्तर पाना उन सब के इस प्रकार, आते प्रय राजमहिषी धरणी देवी गलीं में आती हुई, गुञ्जाशंख आदि से भूषित, स्तनपान करनेवाले बच्चे को वसा में बाँध कर पीठपर रखे एवं भूत तथा भविष्य की सब बातों को सत्य-सत्य बताती हूँ-ऐसा रास्ते-रास्ते में कहतीं हुई पुलिन्दिनी (शकुन कहनेवाली) को बुलाकर हंसती हुई, सोने का सू लाकर उसमें तीन, तीन सेर के मुक्ता के तीन ढेर रखकर, बोली कि हे पुलिन्दे ! भूत या भविष्य कोई भी तुम सत्यं-सत्य कहो । ऐसा पूछती हुई धरखी देवी वहाँ ठहर गयी । (२५-२९) पृष्टा साऽवददस्थास्तु मनसा यद्विचिन्तितम् ।। २९ ।। 'मध्यराशौ चिन्तितं ते वद कल्याणि मे ऋजु । ओ'मित्याहाऽथ धरणी पुलिन्दां राजवल्लभा ।। ३० ।।