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इस प्रकार पूछी जानेपर वह (पुलिन्दिनी) जो कुछ धरणी देवी ने मन में सोचा था उसे बोली ! हे कल्याणि ! तुमने मध्यम राशि में चिन्तन किया ? कहो, सत्य है? राजवल्लभ धरणी देवी ने पुलिन्दा से “हा' कहा । (३०) 304 'राशिरुक्तः फलं बूहि धनराशि ददामि ते' । धरणी देवि बोली ! राशि दे दगी । राशि तो बतादी, अब फल बताओ, मैं तुभको धन की (३१) पुलिन्दोवाच : सत्यं वदामि ते सुभ्र ! शिशोरन्न प्रयच्छ मे ।। ३१ ।। इत्युक्ता सा तु धरणी स्वर्णपात्रेऽन्नमाददे ।

  • दत्वा तस्ये पुलिन्दन्य ' सत्यं ब्रूहीति साऽवदत् ।! ३२ ।।

पुलिन्दा बोली-हे सुन्दर भुकुठिवाली ! मैं सत्य-सत्य बताऊँगी, भुझको लड़ने के लिए (पहिले) कुछ अन्न दे दी । उसके ऐसा कहने पर धरणी देवी सोने के पात्र में अन्न ले आयी और उसे पुलिन्द को देकर बोली-(अब) सत्य सत्य कहो । (३२) सक्षीरमन्नमादाय दत्वा पुत्राय भामिनी । सा सत्यमवदत्सुभ्रदुहितुर्देहशोषणम् ।। ३३ ।। पूरुषादागतं भीरु तद्वपादर्शनादियम । अङ्गतापं समापन्ना ह्यनङ्गशरपीडिता ।। ३४ ।। स तु देवादिदेवो वै वैकुण्ठादागतस्स्वयम् । श्रीवेङ्कटाद्रिशिखरे स्वामिपुष्करिणीतटे ।। ३५ ।।