पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३३६

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318 इदं शृत्वा वचस्तासां हयमारुह्य वेगवान् । आजगामाशु भगवान्स्वालयं रुचिरं गिरिम् ।। २९ ।। उसको ग्रहण करने की इच्छा से उस पुरुष है उनसे पूछा यह जिसकी कन्या है? उन्होंने कहा कि हे महाबल ! यह ठाकाशाज की राजकन्या हैं। उनके इस वचन यो सुनकर परम वेग से घोड़े पर सवार ही भगवान पवित्र पर्वत पर के अपने सुन्दर देवालय में श्रीघ्र चले गये । (२८-२९) तत्र स्वालयमासाद्य स्वामिपुष्करिणीतटे । मामाहूयावदद्देवो 'हला वकुलमालिके ! ।। ३० ।। वियद्राजपुरं गत्वा प्रविश्यान्तःपुरं सखि! । तत्पत्नीं धरणीं प्राप्य पृष्ट्वा कुशलमेव च ।। ३१ ।। याचस्व तनयां तस्या रुचिरां कमलालयाम् । राज्ञोऽभिमतमाज्ञाय शीघ्रमागच्छ भामिनि ! ।। ३२ ।। इत्थं देवेन चाज्ञप्ता देवि ! त्वद्गृहमागता । यथोचितं कुरुष्वेह राज्ञा मन्त्रियुतेन च ।। ३३ ।। कन्यया च विचार्येव प्रोच्यतामुत्तरं वचः ।। ३४ ।। वहा स्वामिपुष्करिणी के तटपर अपने आलय में पहूँजकर श्री भगवान ने मुझको बुलाकर कहा—हे उखी वकुलमालिके! आकाय राजा की नगरी में जा अन्तःपुर में प्रवेश कर उस राजा की प्रधान महिषी श्री ध५णी देवी को पा कुशलादि पूछकर उनकी परम सुन्दरी पुत्री कमलाला पद्मावती देवी की याचना करना और श्री वियत राजा की राय को जानकर हे भामिनि ! तुम शीघ्र बली आो । हे देवि ! भगवान से ऐसी आज्ञा पाकर आपके गृह में आई हूँ। अब मन्त्रियों से युक्त राजा तथा अपनी कन्या से राय लेकर यथोचित करो और मुझको उत्तर दो ! (३०-३४ )