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322 विश्वकर्मादिकृतषुरालङ्कारादिक्रमः आहूय विश्वकर्माणं पुरालङ्कारकर्मणि । नियोजयामास सोऽपि निर्ममे निमिषान्तरात् ।। ४९ ।। इन्द्रोऽसृजत्पुष्पवृष्टिं ननृतुश्चाप्सरोगणाः । धनदा धनधान्याद्यः पूरयामास वश्म तत् ।। ५० ।। यमस्तु रागराहताञ्श्चकार मनुजान् भुवि । वरुणो रत्नजालानि मौक्तिकादीन्यपूरयत् । एवं सम्पाद्य सर्वाणि ययुर्देवा वृषाचलम् । ५१ ।। विश्वकर्मा से लगरी को सजवाना पुनः विश्वकर्मा को बुलाकर नगर को सजाने के काम में नियुक्त किया। उन्होंने भी (विश्वकर्मा) क्षणभर में ही सब बना दिया । इन्द्र ने फूलों की वर्षायी । अप्सराओं ने नृत्य किया । धन देनेवाले कुबेर ने वन धान्य आदि से उस नगर तथा मकानों को पूर्ण कर दिया । पृथ्वी पर के मनुष्यों को यमराज ने रोग रहित कर दिया तथा वरुण ने मुक्ता दादि रत्नों के जालों से उसे परिपूर्ण कर दिया । इस प्रकार सब कुछ सम्पादन कर सभी देवता वृषाचल पर गये । (४९-५१) शुकेन सह बकुलायाः श्रोनिवाससमीपे गमनम् श्रीवराह उवाच :- ततः सा हयमारुह्य शुकेन सहिता ययौ । श्रीवेङ्कटाद्रिमासाद्य देवाचलसमीपत ।। ५२ ।। अवरुह्य तुरङ्गात्सा सशुकाऽभ्यन्तरं ययौ । दृष्टा देवं रत्नपीठे श्रिया सह सुलोचनम् ।। ५३ ।।