पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३४१

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323 प्रणम्य ह्यवदत्प्रीता कृत्यं तत्र कृतं विभो । माङ्गल्यवार्ता वक्तुं वै शुक एष समागतः ।। ५४ ।। श्री वराह भगवान बोली-तब वकुल मालिका शुक महर्षि के साथ घोड़े पर चढ़कर श्री बेङ्कटाद्रितक पहुँच भगवदालय के निकट बोड़े से उतरकर उनके साथ भीतर गई । श्री लक्ष्मीजी के साथ सुन्दर आंखवाले भगवान की रत्नों के पीडे पर देख वह प्रणामकर बोले-हे विभो ! वहाँ का काम कर लिया । माङ्गलिक वार्ता कहने के लिए यह शुकजी आये हैं। (५२-५४) श्रीनिवासाय शुकावेदितपद्मावतीपरिणयवृत्तान्तः ‘वदेति देवेनाज्ञाप्तःशुको नत्वा तमब्रवीत् । त्वां प्रत्याह सुता भूमेर्मामङ्गीकुरु माधव ! ।। ५५ ।। वदामि तव नामानि स्मरामि त्वद्वपुस्सदा । श्रियन्ते तव चिह्नानि भुजाद्यङ्गे रमापते ।। ५६ ।। त्वद्भक्तानर्चयामीह पञ्चसंस्कारसंयुतान् त्वत्प्रीतये हि कभर्माणि करोमि मधुसूदन ! । ५७ ।। एवं सदैवाचरन्त्याः पित्रोरनुमते मम । कुरु प्रसादं देवेश मामङ्गीकुरु माधव ! ।। ५८ ।। शुकजी कथित विवाह वृत्तान्त भगवान की बोलों ऐसी आज्ञा पाकर शुकजी ने प्रण:म जर उनसे कहा कि पृथ्वीसुतः आपके प्रति बोली हैं, कि 'हे माध ! मुझे स्वीकार करो । मैं आप ही का नाम सदा जपती हूँ और अावकी सौम्यसूर्ति (शरीर) का ही सदा ध्यान का स्मरण करती हूँ। हे रमापति! मैं आपके. चिह्नों को छ्। भुजादि शरीर में धारण