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324 करती हूँ। १ञ्च संस्कारों से युक्त आपके भक्तों को मैं सदा पूजती हूँ । हे मधुसूदन ! मैं आपकी प्रीति के लिये ही कामों को करती हूँ । इस प्रकार सदा आचरण करती हुई 'मुझ से, मेरे पिता की अनुमति से हे देवेश ! हे माधव !! मेरे ऊपर अनुग्रह कर मुझे स्वीकार करो । (५.५८) पद्मावत्या शुकद्वतश्रीनिवासमालाधारणम् शुक उवाच इति विज्ञापयामास कमलस्था धरालुता । शुकस्य वचनं श्रुत्वा सुप्रियं त्वात्मनो हरिः ।। ५९ ।। श्रीभगवानुवाच : कर्तु कल्याणमुद्वाहमागमिष्यामि चामरै । शुक गच्छ वदैवं तामित्थं देवोऽब्रवीदिति ।। ६० ।। पद्मावती से भेजी हुई माला को भगवान का धारण करना शुकजी बोले :-यही कमलस्या पृथ्वी सुता पचावती ने निवेदन किया है । इस प्रकार शुक से अपने प्रिय वचन सुनश्र भवान् बोले-हे शुक ! तुम जाओी और उससे कही कि भगवान ने ऐष्टा हा है कि मांगलिक विवाह करने को मैं देवताओं के साथ आऊँगा । शुकः श्रुत्वा देववाक्यमादाय वनमालिकाम् । देवदत्तां ययौ शीघ्र वियद्राजसुतां प्रति ।। ६१ ।। तुलसीमालिकां दत्वा मृगनाभिमुगन्धिनीम् । प्रणम्य देवीमवदच्छुको देववचः शुभम् ।। ६२ ।। श्रुत्वा तन्मालिकां गृह्य भूमिजा शिरसा दधौ । चक्रेऽलङ्कारमुचितं देवागमनकाङ्क्षिणी ।। ६३ ।। (५९-६०)