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ब्रटमादि के साथ भगवान का आकाशराजा की नगरी में जाना पीछे श्री लक्ष्मी जी के साथ गरुड पर सवार होकर ब्रह्माने शंकर, इन्द्र वरुण, यम कुबेर आदि से सेवित हो, वसिष्ठादि मुनियों, धनकादि योगीन्द्रौं तथा भगवद्भक्तों से युक्त होकर नारायणपुरी को प्रस्थान किया । उस समय भगवान के सामने गन्धर्वपति गाने लगे, अत्सराएँ नाचने लगीं । तया देवदुन्दुभिया बजने लगीं। मुनिगण स्वस्तिकादि तथा सूक्तादि जपते हुए भगवान के पीछे-पीछे गये । देवतागणों, विष्वक्सेनादि पार्षदों तथा रथपर बैठो हुई वकुलमालिकादि सखियों से समन्वित होकर श्री भगवान झाकाशराजा की सुन्दर अलंकृत नगरी में पहुँचे । (१४-२७) देवमागतमालोक्य कन्यामैरावतस्थिताम् । पुरीं प्रदक्षिणीकृत्य गोपुरद्वारमागताम् ।। १८ ।। पद्मावतीपरिणयघट्टः आलोक्याऽऽकाशराजोऽपि समानीय वधूवरौ । बन्धुभिस्सहितस्तस्थौ देवमालोक्य केशवम् ।। १९ ।। पद्मावता का विवाह सस्करण भगवान तथा ऐरावत हाथी पर पुरी की प्रदक्षिणाकर आयी हुई गोपुर द्वार पर छन्या को देखकर आकाशराज वर-वधू दोनों को लाकर बन्धु बान्धवों के साथ भगवान केशव को देखते ठहर गये। (१८-१९) 43 विष्णुमर्मालां स्वकण्ठस्थां हस्तेनाऽऽदाय सस्मितः । कमलायाः स्कन्धदेशे मुमोच सुमनश्चिताम् ।। २० ।। आदाय भल्लिकामालां सास्य कण्ठे समर्पयत् । एवं त्रिवारं तौ कृत्वा वाहनादवरुह्य च ।। २१ ।।