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330 क्रिया । तब भगवान ने अपने कन्धे (गलै) में पड़ी तथा उत्तम फूलों की बनी हुई माला को अपने हाथों से निकालकर, हंसते हुए कमला श्री पद्मावती देवी के गले में डाल दिया । कमला देवी ने भी अपनी मल्लिकामाला को उनके गले में समर्पित किया । इस प्रकार उन दोनों ने तीन बार माला धारण करके वाहनों से उतरकर थोड़ी देर तक पीढे पर बैठकर पीछे ब्रह्मादि देवसमूह के साथ सुन्दर गृह में प्रवेश स्थित्वा पीठे क्षणं पश्चात् गृहं विविशतुः शुभम् । ब्रह्मादिदेवयूथैश्च सहितौ भूमिजाहरी ।। २२ ।। माङ्गल्यसूत्रबन्धादि सांकुरार्पणमब्जः । वैवाहिकं कारयित्वा लाजहोमान्तमेव च ।। २३ ।। व्रतादेशं समाज्ञाय शायितौ कमला हरी । चतुर्थे दिवसे सर्व समापय्य चतुर्मुखः ।। २४ ।। अनुज्ञाप्य वियद्राजमारोप्य गरुडे हरिम् । देवीभ्यां सहितं देवं देवैर्गन्तुं प्रचक्रमे ।। २५ ।। (२०-२२) माङ्गलिक सूत्र का बन्धनादि तथा लाजहीमपर्यन्त माना, जव का अङ्कुर तथा वैवाहिक अन्यान्य क्रिया समाप्त कर एवं (तीन दिन का) व्रत पालन का नियम समझाकर ब्रह्माजी ने कमला और भगवान को सुलाया । चौथे दिन चतुर्मुख ब्रह्माजी ने सब कुछ समाप्तकर आकाशराजा से अनुज्ञा लेकर देवियों के साथ भगवान को गरुड पर चढाकर अन्यदेवताओं के साथ अाख्यान के लिए समारोह किया। (२३-२५) व्यदुन्दुभानघाषः सम्प्राप्य वृषभाचलम् । तुष्टुवुर्देवदेवेशं ब्रह्माद्या देवतागणाः ।। २६ ।। शुकादयो मुनिगणाः तुष्टुवुः पुरुषोत्तमम्। स्तूयमानोऽथ देवोऽपि विवेश मणिमण्डपम् । रमाधरणिजाभ्यां च तत्र सिंहासनं ययौ ।। २७ ।।