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332 राजा वियत का वर वधू को दहेज देना तब आकाशराजा ने महेन्द्रादि देवताओं के साथ अपनी पुत्री तथा विष्ण भगवान की प्रीति वा प्रसन्नता के लिए (दहेज) नजराता झरने वा देने को तैयार इी, सोने के कहाडों में धान से निकाले हुए चावलभार, अनेकों मुंग के (भरे) पात्र सैकडों घी के घड़े, हजारों दूत्र के घडे, अलेकों दही के भाण्ड दिव्य आम, केला, नारियल के फल, धात्रीफल, भूरा फल, राजरंभाफल, पलस मातुलुग फल तथा शक्कर से भरे घडे, सोना, मणि, मुक्ता, करोडों करीड़ों रेशमी की धोती चादर-वस्त्र ; हजारों दास दासियाँ, करोडौं शौएँ, हंस तथा चन्द्रमा के समान सफेद दस हजार घोड़े, सैकडों बहुत अधिक ऊँचे ऊँचे मदमत्त हथियों तथा नृत्यगीत जाननेवाली स्त्रियों के चार हजार के समूह को श्रीनिवास विष्णु भगवान को प्रदान किया। इन सभी चीजों को देकर राजा भगवान झै सामने खडे हो गये । (२८-३४) श्रीनिवासकृपया वियद्राजस्य भक्तिप्राप्तिरूपवरप्राप्तिः दृष्ट्वा देवोऽपि तत्सर्वं देवीभ्यां सहितो हरिः ।। ३५ ।। सुप्रीतः प्राह राजानं श्वशुरं वेङ्कटेश्वरः । वरं वृणीष्व हे राजन् ! गुरो मत्तो यदिच्छसि ।। ३६ ।। इति श्रीशवचः श्रुत्वा वियद्राजोऽवदद्विभुम् । त्वत्सेवैवेह देवैवं भूयादव्यभिचारिणी । मनस्त्वत्पादकमले त्वयि भक्तिर्ममास्तु वै ।। ३७ ।। देवियों के साथ साथ सब चीजों को देखकर भगवान परम प्रसप्त होकर अपने भ्रसुर श्री आकाशराज्ञा से बोले-हे राजन ! हे गुरु ! आप जो कुछ चाहे वह वर मांग खे । लक्ष्मीपति की इन बातों को सुनकर आकाशराजा ने भगवान से कहा कि आपफी इसी प्रकार धर्म से सेवा हो और मेरा मन आपके चरण कमलों में सर्वदा लगा रहे तथा आप में हमारी भक्ति होवे । (३५-३७)