पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटाचलमहात्म्यम्-१.pdf/३५३

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335 सुन्दर आकृतिवाले भगवान श्रीनिवास किससे देखे जायेंगे । हे विभो ! यह सभी प्रसन्न होकर मुझसे कहिये। मुझे यह सब सुनने की उत्कट इच्छा है । (१-२) श्री वराह उवाच : वक्ष्यामि शृणु हे देवि ! भविष्यद्यद्वदामि ते । अस्मिन्महीधरे पुण्ये निषादो वसुनामकः ।। ३ ।। श्यामाकवनपालोऽभूद्भक्तिमान्पुरुषोत्तमे । श्यामाकतण्डुलान्पक्त्वा मधुना परिषिच्य च ।। ४ ।। निवेद्य देवदेवाय श्रीभूमिसहिताय च । श्रीवराह जी बोले- हे देवि जो कुछ भविष्य की बातें मैं कहता हूँ वह तुम सुनो । इस पुण्यपर्वतपर वसु नामक निषाद श्यामाक वन का संरक्षण करता हुआ भगवान की भक्ति करता या । वह शामा के चावलों को पकाकर मधु से मिजाकर, श्रीलक्ष्मी तथा भूमि देवियों के सहित देवादिदेव भगवान को अर्पण करता था । (३-४) एव भातमतस्तस्य भार्या चित्रवती शुभा ।। ५ ।। असूत तनयं बाला वीरनामानमुत्तमम् । वसुः पुत्रेण सहितो भार्यया पतिभक्तया ।। ६ ।। कश्मिंश्चिद्विवसे पूत्र श्यामाकं पालयेति च । वसृज्य पत्न्या साहृता भध्वन्वषणतत्परः ।। ७ ।। गतो वनान्तरं शीघ्र मधुच्छन्नदिदृक्षया । इस प्रकार भक्ति करते समय उसकी सुन्दरी (स्त्री) चिढवती ने वीर नामक उत्तम पुत्र को प्रसव किवा । पुत्र एवं पतिभक्ता स्त्री को पाकर वसु किसी दिन